
सोचो तो , ये मंज़िलें, ये राहें, ये रास्ते , बने हैं किसके वास्ते——।
यक़ीनन हम इंसानों के लिए, मैं तो कहूँगा नादानों के लिए ।
पूछो क्यूँ, क्योंकि नादान इन्सान, करते हैं ग़लत राह का चयन और दुखों से भर जाता है उनका जीवन!
एक पियक्कड़ कौन सा रास्ता चुनता है ,महज़ मयखाने का—-उसे चाहिए बस साक़ी और जाम।
मयखाने में फिर बीतती है उसकी ज़िन्दगी की हर शाम।
एक आस्तिक चुनता है रास्ता मन्दिर का, वहाँ जा करता है वो पाठ पूजा।
उसे परम पिता परमेश्वर से ज़्यादा नहीं भाता कोई दूजा।
बचपन से ही शुरू हो जाता है रास्तों का चयन।
छोटे छोटे बच्चे बस्ते का बोझ उठाये रोज़ उस राह पर चलते हैं , जो उन्हें ले जाता है पाठशाला।
और जो होते हैं मेहनती और चतुर, उनका हर क्षेत्र में रहता है बोल बाला।
उम्र का अगला पड़ाव आया, आयी जवानी, और एक ही पल में ज़िंदगानी बन जाती है मस्तानी।
और हरेक को फिर आशिक़ी का रास्ता लगने लगता है रूहानी।
युवा अवस्था में अहसास और जज़्बात मचाते हैं बहुत शोर।
नींद नहीं आती , इंतज़ार रहता है कि कब होगी भोर।
हमेशा महबूब को मिलने के लिए बेचैन रहती हैं निगाहें——सभी चुनते हैं इश्क़ ओ मोहब्बत की राहें।
फिर हो जाती है शादी, और हर रास्ते पर आवाज़ देती हैं रिश्तेदारियाँ और ज़िम्मेदारियाँ।
उम्र का बढ़ना तो है लाज़मी , आ जाता है फिर बुढ़ापा , वृद्धावस्था भी है एक स्यापा।
सब से ज़्यादा मुश्किल होता है चुनना अब सही रास्ता——हर राह पर अब दिखती है रुकावट, हर रिश्ते में दिखती है अब मिलावट।
औलाद भी छोड़ देती है साथ, उसी दिन जिस दिन वसीयत लगी उनकी हाथ।
हमसफ़र भी नहीं रहता, साथ तमाम उम्र, फिर हर राह पर मिलती है सिर्फ़ तन्हाई——!
उस ख़ुदा ने ऐसी ही अजीब ओ गरीब दुनिया है बनाई!
कुछ साल पहले की तो बात है, हुई थी शादी और बजी थी शहनाई।
और अब अधेड़ उम्र के हर रास्ते पर है वीराना—-क्या बताएँ , यही है हर ज़िन्दगी की कहानी , हर ज़िन्दगी का फ़साना——!
हर कोई चुनता है अपने जीवनकाल में अनेकों रास्ते——मालूम नहीं कि कौन सा रास्ता है उचित , कौन सा अनुचित ?
बस इसी कश्मकश में जीवन जाता है बीत——-!!!
लेखक——निरेन कुमार सचदेवा।