अपनी ज़िन्दगी के बारे में आप क्या सोचते हो-“निरेन कुमार सचदेवा”

क्या सोचते हैं आप , ज़िंदगी नायाब हैं या आज़ाब ?
क्या सोचते हैं आप ,ज़िंदगी निकम्मी है या लाजवाब ?
क्या सोचते हैं आप , ज़िंदगी में किसी चीज़ का कोई हिसाब है या फिर सब कुछ है बेहिसाब ?
क्या सोचते हैं आप , ज़िंदगी में ज़्यादातर लोग होते हैं कामयाब या नाकामयाब ?
क्या सोचते हैं आप , क्या आजकल की ज़िंदगी भी एक सियासी दौर ही है , है एक इंकिलाब ?
क्या सोचते हैं आप ,ज़िंदगी एक खुली कहानी है या एक उलझी किताब ?
क्या सोचते हैं आप , ज़िंदगी में सिर्फ़ बुराईया ही हैं या फिर ये करती है बुराईयों को बेनक़ाब ?
क्या सोचते हैं आप , क्या ज़िंदगी में आपकी अहमियत सिर्फ़ तब तक ही है , जब तक आपके साथ है रुबाब और शबाब ?
क्या सोचते हैं आप , क्या ज़िंदगी में सिर्फ़ मौक़ापरस्त लोग ही सफल होते हैं या फिर नेक इंसानों को भी मिल पता है कोई ख़िताब ?
क्या सोचते हैं आप ,क्या ज़िंदगी में आज भी अदब ,तहदीब , मर्यादा जैसे अहसास आज भी ज़िंदा हैं , या फिर सब कुछ हो चुका है ख़राब ?
क्या सोचते हैं आप , क्या ज़िंदगी में कोई हक़ीक़त भी है , या फिर सब लोग तमाम उम्र देखते रहते हैं बस ख़्वाब ?
क्या सोचते हैं आप ,क्या ज़िंदगी सिर्फ़ अनगिनित सवाल ही करती रहती है या फिर उसके पास है इन सवालों के जवाब ?
क्या सोचते हैं आप , आजकल की ज़िंदगी में दोस्ती यारी का महत्व , या फिर हर रिश्ते में हर कोई ढूँढता है बस अपना लाभ ?
बहुत सोचा मैंने , मुझे इन सवालों का ना मिल पाया कोई जवाब , ये सब सवाल अब आपने भी तो पढ़ लिए हैं, अब आपके जवाबों का मुझे बेसब्री से इंतज़ार रहेगा जनाब !!
लेखक———निरेन कुमार सचदेवा
Waiting eagerly for your response my dears !!

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