यहाँ बिकता है सब कुछ, ज़रा रहना संभल के——लोग हवा भी बेच देते हैं ग़ुब्बारों में balloon 🎈डाल के।
बात तो गौर तलब है——हाँ हम भी जनाब सहमत हैं आपके इस ख़याल से।
लेकिन सोचने का एक मुख़्तलिफ़ भी है नज़रिया, इस के कारण किसी को जीने का वसीला मिला।
किसी गरीब ने इस ग़ुब्बारे को बेच कर, कुछ पैसा कमा लिए—-और कुछ भोजन ख़रीदने पर वो पैसे खर्च दिये।
किसी ज़रूरतमंद ने शायद फिर पेट भर खा लिया, कम से कम एक दिन तो वो भूखा नहीं रहा।
जिस किसी ने ख़रीदा ये ग़ुब्बारा, उसके लिए भी ये सौदा रहा न्यारा।
उसे मिली ख़ुशी , और ग़ुब्बारे के साथ मौज मस्ती कर आयी लबों पे हँसी।
तो सोचो तो ये सौदा नहीं रहा घाटे का, किसी की भूख मिटी, किसी को ख़ुशी मिली।
और आख़िर तो उस ग़ुब्बारे को फटना ही था, तो क़ैद हवा भी हो गई आज़ाद——और हवा भी वातावरण में जा मिली, वो भी हो गई फिर से आबाद।
लेकिन सब कुछ बिकता है आजकल , इस सच को भी हम नहीं कर सकते नज़रअंदाज़।
मैं तो महज़ कुछ अच्छे विचारों का कर रहा था आग़ाज़।
सच है, आज की दुनिया में लाज़िम है ऐतियात भरतना——हर कदम फूँक फूँक कर रखना, ज़रूरी है संभल संभल कर
चलना——!!
लेखक——निरेन कुमार सचदेवा।
We are all living in a strange world 🌍 these days .
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