मुझे याद आ रहा है,
वह दिन,
जब मैं जगदलपुर में,
रहा करता था,
आज के दिन,
अपने हाथों में,
खिचड़ी के पैकेट लेकर,
निकल पड़ता था,
माँ दंतेश्वरी के मंदिर के समीप बैठे,
उन बहुत से गरीब,
बेसहारे भिक्षुओं के पास।
एक एक की झोली में,
खिचड़ी के पैकेट,
डाल आता था।
वे गरीब असहाय बेबस लोग,
बड़ी चाव से मेरी खिचड़ी,
खाया करते थे,
अपनी धंसी पेटों की आँतों को शांत कर,
तृप्ती पाया करते थे।
मै बहुत सा आत्मिक सुख,
तब महसूस करता था।
मुझे याद है,
मै जब तक था जगदलपुर में,
ऐसा करता रहा था,
वहाँ बैठे भिक्षुओं को,
कभी भी या पर्व विशेष पर,
उनके ज्वलंत उदरों को,
तृप्त करता रहा था।
मै जानता हूँ वह ईश्वर,
का ही कार्य था,
मै तो निमित्त मात्र था।
आज भी वह कार्य संपन्न हो रहा होगा,
बस ईश्वर का यह कार्य,
किसी और के निमित्त होगा।
— संतोष श्रीवास्तव “सम”
कांकेर छत्तीसगढ़।