
उन से कह दो कि सज़ा कुछ कम कर दें हमारी , पेशे से मुजरिम नहीं थे , ग़लती से इश्क़ कर बैठें हैं
हम ।
कुछ ऐसा दिलकश था अन्दाज़ उनका , लाजवाब नज़ाकत , बेहिसाब ख़ूबसूरती , आँखों में नज़र आयी हमें उल्फत , मुजरिम हम हैं या वो हैं , ये फ़ैसला कर लो तुम , ये तो तय है कि उन की अदाओं पर मर बैठें हैं हम ।
चलो हम अपने आप को मुजरिम मानते हैं , हालाँकि हम दोषी नहीं हैं , दोषी है उनका सुरूर , दोषी है उनकी शोख़ियाँ , क्या ग़लत हुआ जब उन्हें देख उठीं हैं मन में हज़ारों ख़्वाहिशें , हज़ारों तमन्नाएँ ।
मुजरिम क़रार तो दे ही दिया है , लगा दो इश्क़ की हथकड़ियाँ , पहना दो मोहब्बत की बेड़ियाँ , डाल दो अपने दिल के क़ैद में , कम से कम आप से फिर हो तो जाएँगी नज़दीकियाँ ।
क़त्ल उनकी नज़रों ने किया हमारा , ऐसे तीरे नशतर चलाए , जो हो गए हमारे दिल के आर पार , बहुत असरदार था उनका वार , छा गया हम पर इश्क़ का ख़ुमार ।
उनका ग़ज़ब का था क़ातिलाना अन्दाज़ , जिसे हम ना कर पाए नज़रंदाज , हमने उनको चेतावनी दे दी थी , कि दिल धड़कने लगा है , शोला भड़कने लगा है , लेकिन वो शरारतें करते रहे , मस्ती करते रहे , वो ना आए बाज़ ।
मानते हैं हम कि क़ातिल हैं हम , मुजरिम हैं हम ,सज़ा दो हमको , कुछ ऐसी सज़ा दो जो मज़ा दे हमको, क़ैद कर लो हमको , लोहे की ज़ंजीरों की नहीं है ज़रूरत , तुम्हारी बाहें हीं काफ़ी हैं , उन में उम्र भर क़ैद होने की हम को है हसरत ।
क़ैद करना इतनी मज़बूती से कि सदियों सदियों तक हम तुम्हारे क़ैदी बने रहें , तुम्हारी जज़्बातों के कैदखाने में , ताकी हम भी ये बात कह पायें , कि कुछ तो बात फ़र्क़ है हमारे दीवाने में ।
नशा तुम्हारी आँखों का , मात देता है इन मय के प्यालों को भी, कि बिन पिए ही हम बहकने लगते हैं इन पलकों के मयखाने में , अब और क्या उम्मीद करते हो तुम इस परवाने से ?
अन्दाज़ क़ातिलाना , मिज़ाज आशिक़ाना , मौसम भी है सुहाना , अब कोई बहाना ना बनाना , दौड़ कर हमारे पास आ जाना , ये दलील ना देना कि क्या कहेगा ज़माना ?
हम तो पहली नज़र में हीबन्दी बन चुके थे , तुम्हारा दिल तो हमारी बन चुका है अब हमारी मलकियत , तुम्हारे नाज़ ओ नख़रे बन चुके हैं हमारी ज़िंदगी की हक़ीक़त ।
अब फ़ैसला कर लो क्या सज़ा है हमारी , हमें क़ुबूल हर अदा है तुम्हारी , बस एक वादा चाहते हैं, इस इश्क़ के पिंजरे में तमाम उम्र हम क़ैदी बने रहेंगे , नहीं चाहते कभी रिहाई , है इसी में हमारी भलाई ।
लेखक——-निरेन कुमार सचदेवा।