उदास लम्हे नहीं रहेंगे, अगर मुहब्बत सजे दिलों की।**जहान में हर खुशी रहेगी, अगर न उल्फत मिटे दिलों की।**किसी ने चाहा किसी ने रोका,न देख पाते दिलों की हसरत,**न ऑंख रोती न दर्द होता,समझ से चाहत बने दिलों की।**मिटें मुसीबत के पल जहां से, अगर नसीहत की हो समझ तो,**न मशविरों को कभी निभाते, तो खैर कैसे रहे दिलों की।**न बन्दगी सज रहे किसी की,मिली जो कुदरत से ज़िन्दगी को,**यहाॅं की दौलत है बस मुहब्बत,सजे सदा जो बने दिलों की।**करे हमेशा “चहल”इशारा, सभी सजा लें ज़हान सारा,**मिला करें जब कभी किसी से, तो हालतों को कहें दिलों की।
एच. एस. चाहिल। बिलासपुर। (छ. ग.)