कहना ही पड़ा आख़िर उसे मेरी शायरियों को पढ़ कर, कमबख़्त की हर बात मोहब्बत से भरी है ।
वैसे तो कमबख़्त मैं नहीं, वो है, बहुत वक़्त लग गया उसे समझने में , कि मैंने अपनी शायरी में लिखी हर बात खरी है ।
ऐसी भी क्या मासूमियत , जो वो जान ही ना पाए , मेरी शायरी में लिखे अल्फ़ाज़ों की हक़ीक़त ।
यक़ीनन वो नाटक रच रही है मासूमियत का, उस पर भी तो छाई हुई है भरपूर जवानी, तेज़ रफ़्तार में है उसके ख़ून की रवानी।
मालूम है मुझे कि वो मेरी शायरी पढ़ रही है मुद्दत से ।
लेकिन इशारों इशारों में ही सही , मोहब्बत का इज़हार किया है उसने एक अरसे के बाद, शायद वो मेरी शायरी को नहीं पढ़ती शिद्दत से ।
बहुत नादान है, नासमझ है, महज़ शायरी में नहीं, हमारे ख़यालों में इश्क़ है,अहसासों में समाया इश्क़ है, आती जाती साँसों में समाया इश्क़ है !
सवालों में इश्क़ है, जवाबों में इश्क़ है ।
जागते हैं तो इश्क़ साथ रहता है हरदम , रातों को सोते हैं तो ख़्वाबों में इश्क़ है ।
छाई हुई है हम पर इश्के मोहब्बत की जुनूनियत , इसीलिए तो ऐसी ख़ूबसूरत शायरी लिखने में दिख रही है आपको हमारी क़ाबलियत ।
हमारे आस पास जो बहती हैं, उन हवाओं में इश्क़ है, जो पंछी चहकते हैं क़रीब हमारे , उनकी सदाओं में इश्क़ है ।
कह तो दिया आपने , कि हमारी हर बात मोहब्बत से भरी है, अब ये भी जान लो , कि हम जैसे कामयाब शायरों की जात , मोहब्बत से भरी है !
आपने भेजा है ये जो संदेशा , तो आपका किस ओर इशारा है ?
क्या सिर्फ़ मेरी दुखती रग को छेड़ा है, पर आपके भेजे हुए इन चंद लफ़्ज़ों ने कर दिया मेरी ज़िंदगी में उजियारा है !
गफ़लत में हूँ, क्या आप महज़ मेरी लेखनी की कर रहीं हैं वाह वाही ?
या फिर आप बनना चाहती हैं , मेरी हमसफ़र , मेरी हमदर्द , मेरी हमराही ?
पता नहीं अगर आपने हाँ कर दी तो इतनी ख़ुशी मैं कैसे बर्दाश्त कर पायूँगा , पढ़ कर आपके भेजे हुए चंद लफ़्ज़ों को ही , मेरी ज़िंदगी में मच चुकी है तबाही !
लेखक———निरेन कुमार सचदेवा।
Truly said , इश्क़ ने ग़ालिब निक्कम्मा कर दिया , वरना हम भी आदमी थे काम के !!
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