करके मुक्त कतर डाले पर, यह कैसा उपकार कर दिया।
पिंजड़े में चिड़िया अच्छी थी, तुमने जीना भार कर दिया।।
है अभिव्यक्ति न बाधित माना, संविधान में छूट सभी को।
जीभ काटकर रखी जेब में, यह अच्छा उपचार कर दिया।।
रोक-टोक का रहा न डर अब, जो मन करे वही कर डालें।
उँगली उठा न पाए कोई, ‘पंजे’ का निस्तार कर दिया।।
लोकतंत्र को चालाकी से, बदल दिया है भीड़तंत्र में।
साम-दाम से, दंड-भेद से, हर बाधा को पार कर दिया।
राम-नाम की लूट मची है, जनता टूट पड़ी है उस पर।
सभी विधर्मी लगे ठिकाने, ठीक मर्म पर वार दिया।
—डाॅ०अनिल गहलौत