
निर्जला नारी आठ प्रहर रहती, किसके लिए।
तुम भी कुछ कर दिखाते, उस भार्या के लिए॥
भारत की परम्परा है यह, बहुत पुरानी।
सुनो आज, करुआ चौथ की कहानी॥
एक बणिक को सात बेटे, करवा बेटी थी।
भाईयों को बहन, बहुत प्यारी लगती थी॥
उसे खिला कर, खुद खाते थे सब भाई।
एक बार बहन ससुराल से मायके आई॥
संध्याकाल भाईयों ने, बहन को अति सुस्त पाया।
खिलाने बैठे तो उसने खाने का आग्रह ठुकराया॥
बहन बताई, आज करवा चौथ का निर्जला व्रत है।
जल ग्रहण चंद्र दर्शन एवं अर्घ्य देकर ही संभव है॥
रात्रि हुई पर चाँद अभी तक नहीं निकला है।
इसलिए वह भूख-प्यास से व्याकुल हुई है॥
छोटे भाईयों को, बहन की हालत देखी नहीं जाती।
करवा पीपल के पेड़ तले दीपक रख जलाई बाती॥
एक टक आकाश के पुर्वोत्तर देख थकित हुई साईं।
चलनी की ओट से, चाँद उदित हो तो देखें रे भाई॥
भाई बहन को बताया, चाँद निकल आया है बहना।
बहन आह्लादित हो, बिधिवत् अर्घ्य दिया अपना॥
अर्घ्य दे कर जब खाना खाने वह बैठी।
पहला टुकड़ा मुँह में डाली तो छींकी॥
दूसरा टुकड़ा डाली, उसमें बाल एक निकल अटका।
तीसरा ग्रास डाली, पति मृत्यु समाचार का झटका॥
वह बौखलाई तो, भाभी उसको सच्चाई बताई।
त्रुटिपूर्ण व्रत, चँद्र कुपित होने से, विपदा आई॥
करवा निश्चय कर, पति की अंत्येष्टि जा रोकी।
सतीत्व प्रताप, पुनर्जीवन हेतु यम को टोकी॥
कहते हैं वह पति शव के पास, भूखी बैठी भाई।
समय व्यतीत हुआ, उसके ऊपर दूब उग आई॥
दूब एकत्र कर, करवा चौथ भाभियाँ संग व्रती हुई।
भाभियाँ उससे आशीर्वाद लेने जब वहाँ चल आईं॥
बोली भाभी से ‘यम सूई ले लो, यम सूई दे दो।
कहा, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो॥
आग्रह हर बार भाभी, अगली भाभी की ओर बढ़ाई।
छठवीं भाभी आई, करवा उससे भी यही बात बताई॥
व्रत भंग किया तोड़ा, उसकी ही पत्नी में शक्ति है।
व्रती ही, तुम्हारे पति को पुनर्जीवित कर सकती है॥
कहां, जब वह आए तो उसको पकड़ तुम लेना।
पति को जिंदा कर दे, उसे तब तक न छोड़ना॥
यह कह वह गई तब, अंत में छोटी भाभी आई।
करवा उनसे सुहागिन बनने का आग्रह दुहराई॥
लेकिन वह टालमटोली करने जब है लगती।
इसे देख करवा, उन्हें जोर से पकड़ है लेती॥
अपने सुहाग को, पुनर्जिवित करने की याचक बन बोली।
भाभी पसीजी, छोटी अँगुली चीर, अमृत मुँह में डाली॥
पति श्रीगणेश-श्रीगणेश कहता, उठ बैठ आँखें खोला।
प्रभु भाभी को माध्यम बना, मृत सुहाग गणेश बोला।।
डॉ. कवि कुमार निर्मल