चल मिलके रश्मों रिवाजो को तोड़ते हैं हम,
जो भी बीता अब तलक वो छोड़ते हैं हम।
बन जा तु दिया और मैं बनूं बाती,
चल साथ रूख हवा का अब मोड़ते हैं हम।
टूटे न जाने कितने ही मंदिर,मस्जिद,गुरुद्वारे,
बनके केवल मानव अब
एक आशियाना जोड़ते हैं हम।
क्यों बन रहे हो हिंदू,मुस्लिम,सिक्ख,ईसाई,
चल साथ इंसानियत का एक चोला ओढ़ते है हम।
चल मनाएं साथ मिलकर ईद,वैसाखी,क्रिसमस,दिवाली,
तेरा मेरा की सारी बंदिशों को तोड़ते हैं हम।
रजनी प्रभा