गायत्री की आवाज से अल्का अपनी सोच से बाहर निकाल आंसू पूछते हुए बोली माफ करना मां वह मेरा,
वह मेरा ध्यान नहीं गया मैं अभी साफ करके दूसरी चाय बना देता हूं ।
गायत्री झूलते हुए वहां से चली गई ।
पर अल्का ,अल्का की आंखों से झरने बहने लगे वह खुद से कहने लगी आज घर का बंटवारा हो जाएगा ।
आज यह घर तीन हिस्सों में बढ़ जाएगा सभी इस बात को लेकर सहमत और खुश हैं और यह तो इस समाज की रीत है फिर मुझे,
मुझे क्यों इतना रोना आ रहा मैं क्यों नहीं खुद को समझा पा रही हूं।
शुरू से ही बड़े दादा अपने पूरे परिवार के साथ शहर रहते थे और मेरे दादा का परिवार अपने गांव में पुश्तैनी घर में बेशक
इस घर पर उनका पूरा अधिकार है ,
पर बटँवारा,
बटँवारा तो हम
मकान का कर देंगे पर इस घर का क्या जिसमें मैं पली-बढ़ी घर के पीछे बगीचे में झूला- झुलना पेड़ पर
चढ़ना, आगे वाले बड़े से अँगने में बारिश में कूदना, पुरे घर के हर कमरे में चौकड़ी भरना ,छुपम- छुपी खेलना—–?
आज अल्का की नजरों के सामने घर में की अब तक के बीते जीवन का दृश्य घूम रहा था,
वह कह रही थी आज घर के तीन हिस्से मेें बटँ जाएगा पर मेरे बीते बचपन का क्या ,कोने -कोने में बसे उन यादों का क्या ,हर एक लम्हे का, उस सुकून का बँटवारा कैसे करूंगी मैं ,जो मुझे छोटे चाचा के हिस्से पड़े कमरे में आता था।
✒️ तमन्ना