छठ गीत (भोर बेरा के)-“धर्मदेव सिंह”

एगो भगतिन सूरूज देवता से
का कहतारी तनि सुनल जाव।

आरे उगि ना सूरूज देव रउआ
कि दिही हम अरग
कि दिही हम अरग।

भरल बिया आसमान में सगरे बदरिया
नदिया में खाड़ बानी
लेके पकवान भरल सूपूलिया
उगि ना फारके बदरिया ए सूरूज देव
कि दिही हम अरग
कि दिही हम अरग।

भीजल बिया सरिया
भीजल बिया देहिया
ठंढ़ा से काँपतानी थर थर ए सूरूज देव
उगि ना कि दिही हम अरग
उगि ना कि दिही हम अरग।

घड़िया में देखके समईया
देत बाड़न अरगिया सभ बरतिया
बाकिर हम ना देहब अरग
हम ना देहब अरग।

जबले ना देहब रउआ दरसनवा
हम ना देहब अरग
हम ना देहब अरग।

यदि ना देहब रउआ दरसनवा
तऽ लेके पकवनान भरल सूपूलिया
डूब जाईब नदिया बीच हम
डूब जाईब नदिया बीच हम।

ना तऽ उगि ना सूरूज देव रउआ
कि दिहि हम अरग
कि दिही हम अरग।

एह भगतिन के देखिके बड़हन हठवा
उग गईले सूरूज देव फारके बदरिया
भगतिन दिहली खुश होके अरग
भगतिन दिहली खुश होके अरग।

धर्मदेव सिंह
प. बंगाल

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