
ग़ज़ल कहने के लिए सानी मिसरा –
दिल-ए-दुश्मन ये मुझे घेर के फिर लाता है ।।
पूरा शेअर –
जी कड़ा करके तेरे कूचे से जब जाता हूँ ।
दिल-ए-दुश्मन ये मुझे घेर के फिर लाता है ।।
ग़ज़लकार – ख़्वाजा मीर दर्द
रूह से रूह का रिश्ता ही मुझे भाता है ।
शक्ल से प्यार तो दीवाना बना जाता है ।।
याद करता रहूँ दिन-रात पुराने किस्से ।
वो जुदाई का समय कौन भुला पाता है ।।
नाम बदनाम किया भी नहीं होगा उसने ।
बात करने पे समझदार नज़र आता है ।।
अन्न भर पेट मिले जब भी खुशी से फूले ।
तीन दिन तक रहा भूखा अभी वो खाता है ।।
सिर्फ बच्चे को जनम देना ही काफ़ी है क्या ।
अपनी ममता जो लुटाती है वही माता है ।।
सीख लो आज ग़ज़लकार से पढ़ना लिखना ।
ज्ञान जो बाँट रहा एक बड़ा ज्ञाता है ।।
बात कोई बुरी लगती ही नहीं जाने क्यों ।
एक दूजे से हमारा भी गज़ब नाता है ।।
धन्यवाद के धन से धन्यवाद
©® विकास अग्रवाल “बिंदल” , भोपाल मध्यप्रदेश
Wah wah bhaut sunder