तरही ग़ज़ल-“विकास अग्रवाल “

ग़ज़ल कहने के लिए सानी मिसरा –

दिल-ए-दुश्मन ये मुझे घेर के फिर लाता है ।।

पूरा शेअर –

जी कड़ा करके तेरे कूचे से जब जाता हूँ ।
दिल-ए-दुश्मन ये मुझे घेर के फिर लाता है ।।

ग़ज़लकार – ख़्वाजा मीर दर्द

रूह से रूह का रिश्ता ही मुझे भाता है ।
शक्ल से प्यार तो दीवाना बना जाता है ।।

याद करता रहूँ दिन-रात पुराने किस्से ।
वो जुदाई का समय कौन भुला पाता है ।।

नाम बदनाम किया भी नहीं होगा उसने ।
बात करने पे समझदार नज़र आता है ।।

अन्न भर पेट मिले जब भी खुशी से फूले ।
तीन दिन तक रहा भूखा अभी वो खाता है ।।

सिर्फ बच्चे को जनम देना ही काफ़ी है क्या ।
अपनी ममता जो लुटाती है वही माता है ।।

सीख लो आज ग़ज़लकार से पढ़ना लिखना ।
ज्ञान जो बाँट रहा एक बड़ा ज्ञाता है ।।

बात कोई बुरी लगती ही नहीं जाने क्यों ।
एक दूजे से हमारा भी गज़ब नाता है ।।


धन्यवाद के धन से धन्यवाद

©® विकास अग्रवाल “बिंदल” , भोपाल मध्यप्रदेश

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