धर्म की बीमारी, जाति का चश्मा लाया हूं
इंसानियत पर अज्ञान की अंधता,लाया हूं
रहे हैं दिखा,धर्म के कागज़ात जो।हमें
उनकी ही आंखों को दृश्य नया,लाया हूं
दर पर नहीं चढ़ने दिया जाता था जिन्हें
उन अछूतों को ही मंदिर के यहा,लाया हूं
तिरंगा,फहरा रहा है हर जगह आज तो दोस्त
कुछ रंग हैं बेचारे बस एक सजा,लाया हूं
लाल,पीला,हरा,नीला,भगवा,ये रंग हैं अपने
तुम्हारे लिए समेट के में ये ध्वजा, लाया हूं
डॉ विनोद कुमार शकुचंद्र