नववर्ष का संकल्प-“उज्ज्वल प्रताप सहाय”

उन्माद कर, चित्कार कर, ना बैठ तु यूँ हार कर,
दक्ष बन, इतिहास रच, शेर सा हूँकार कर ।

ऊँचाई हो आकाश सी और क्षमाशील बन,
कठिन है जीवन सागर, पर तु सक्षम है पार कर।

सुकून बन हरी दूब सी, बिखेर अपने प्रेम को,
सत्य बोल, दंभ भर, उपकृत हो उपकार कर।

वृक्ष बन घना सा, फल से लदा हुआ,
निहाल हो समाज ये, तु इतना प्यार कर।

रंग भर हर शख्स में, खुद श्वेत सा तु सौम्य बन,
महान बन, सुकर्म कर, असत्य को दुत्कार कर।

तपिश हो सूर्य की, शीतल बन चाँद सा,
विरल हो समीर सा, ना कभी अहंकार कर।

वफा कर गैर से, स्तंभ बन समाज का,
गर गुजर रहा है तु, तो देश को नमस्कार कर।

उन्माद कर, चित्कार कर, ना बैठ तु यूँ हार कर,
दक्ष बन, इतिहास रच, शेर सा हूँकार कर ।

5 Comments

  1. Awantika

    Inspirational poem by you sir😊

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