नीम पिता सा हो गया
एक पौधा लगाया था पिता ने
नीम का, हाँ! कड़वे नीम का
नन्हा सा वह पौधा, बढ़ता रहा
सिर्फ पानी की खुराक पर
न चाही कभी खाद, न निराई-गुड़ाई
ना ही कोई अतिरिक्त देखभाल
बस! बढ़ता रहा
पिता की उम्र के साथ-साथ
फैलाता रहा डालियाँ
उनकी बाहों की तरह
एक रोज, पिता नहीं रहे
लिटाया गया उन्हें अंतिम यात्रा से पहले
उसी नीम के नीचे
झरने लगे पीले पान
टपकने लगी निंबोलियाँ
खिरने लगा ताजा बोर
समाने लगा नीम
पिता की पार्थिव देह में
नीम… पिता सा होने लगा
चूँट लेते हैं बच्चे खेल-खेल में हरे पत्ते
नोच लेते हैं निंबोलियाँ
कभी माँ भी तुड़वा लेती है
ताजा बोर
बाती में बाल कर, काजल उपाड़ने के लिए
और कभी पिसकर चटनी सा
लग जाता है छुटकी के पहले मुहाँसे पर
बेरोजगार भाई बहा देता है अपना अवसाद
इसके तने से पीठ टिकाकर
ससुराल को विदा होती मैं भी
लिपट जाती हूँ नीम से
जैसे लिपटा करती थी पिता से
नीम पिता सा हो गया.
इंजी. आशा शर्मा
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