“पिताअंगना”-डॉ सुनीता श्रीवास्तव

कई वर्ष बीत गए पिता से जुदा हुए।
पिता की आवाज सुनने को ,
आज भी मन करता है ।
कई वर्ष बीत गए  है ,
पिता के घर से डोली में विदा हुए ।

वर्ष बीत गए है,
पिता श्री के घर से विदा होकर
पति के साथ नया घर संसार बसाकर   ।

किन्तु न जाने क्यूँ   ,
शाम ढलते ही मन,
उस घर पहुँच  जाता हैं।
आज भी दिल भर आता है ,
घर मे शौर  का होना।

बाबूजी का आफिस से लौटकर आते ही  
दिन भर का हाल सुनाना ।
शाम होते ही याद आता है,
बहुत मुश्किल से मन  समझाती हूँ।

वो दिन बीत गए ,
अब तुम सपनो मे जी लिया करो ।
उन पलो को जो लौट के ,
कभी ना फिर  आएँगे।
आज भी बाबूजी से किए ,
वादे को निभाती हूँ ।

सबको खुश रखने की  ,
अथक कोशिश मैं ,
अपने आँसू पी जाती हूँ ।

कोई कह दे मेरे ईश्वर से ,
या तो शाम ढला ना करे  ।
या बाबूजी के घर की ,
असहणीय याद ना आया करे।

बहुत खुश हे हम,अपनी इस दुनिया में  
बिन माँगे सब पाया है,
लेकिन दिल से यादे 
कौन निकाल  पाया है ।

पिता के घर की यादे , 
कौन भुला पाया है ।
कई वर्ष बीत गए पिता से बिछुडे 
*डॉ सुनीता श्रीवास्तव
इंदौर (मप्र)
9826887380

Comments

No comments yet. Why don’t you start the discussion?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *