
दर्द को पीता रहा,
बोला नहीं,
कष्ट को सहता रहा,तौला नहीं।
होम जीवन कर दिया,
नव-पीढियों के वास्ते,
पांव के छालों का भेद कभी,
खोला नहीं।
बच्चों के सपनों की खातिर,
जो जलाता अपने अरमानों की होलियाँ।
कौन समझेगा उसकी झुर्रियों की बोलियाँ।
वह आत्म-सुख के जौहर की,
है धधकती चिता।
विश्व ने कहा उसी को पिता।
राज किशोर वाजपेयी “अभय”
ग्वालियर
मोबाइल:9425003616
Super