पिता -डॉ भावना सावलिया

उसे मत भूलना जिसने हमें चलना सिखाया है ।
रुलाना मत उसे जिसने, सदा हमको हँसाया है ।।

किया औलाद के खातिर उन्होंने त्याग सब सुख का ।
नहीं होने दिया अहसास जीवन में कभी दुख का ।
अमिय-सा क्षीर अपना नेह से हमको पिलाया है ।
रुलाना मत उसे जिसने, सदा हमको हँसाया है ।।

कठिन जिसने परिश्रम से किया पोषण हमारा है
मुसीबत में सदा जिनने किया रक्षण हमारा है ।
कि जिसने कौर अपने हाथ से हमको खिलाया है ।
रुलाना मत उसे जिसने, सदा हमको हँसाया है ।।

झुकाते शीश चरणों में,मिले आशीष जब सारे ।
हुए सब कष्ट क्षण में दूर,खिलते बाग तब प्यारे ।
बनाकर बाँह का झूला हमें निशदिन झुलाया है ।
रुलाना मत उसे जिसने, सदा हमको हँसाया है ।।

कभी भूले न हम माँ बाप के उपकार जीवन में ।
रहे करते सदा पूजन, बिठाकर प्यार से मन में ।
कहीं हम रूठ जाते तब सदा हमको मनाया है ।
रुलाना मत उसे जिसने, सदा हमको हँसाया है ।।

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