
हमनें दर्पण में जब भी ख़ुद का दीदार किया,
अक्स अक्सर है उभर आया मेरे उस यार का।
आह से मेरे अक्सर, जान जाती है जनाब की,
और भला कितने इंतिहान, ले हम उसके प्यार का।
सुर्ख़ गालों पे धनक की लाली छाने है लगी,
छुप गई घूंघट में शमां,इंतजार उसके दीदार का।
रंगी मैं पी के रंग,अब कोई परवाह नहीं,
कत्ल करदे या छोड़ दे अब फैसला सरकार का।
मैं बनी मीरा मुझे,तलब है मेरे श्याम की,
डूब जाऊं प्रीत उसके,अब डर कैसा संसार का
रजनी प्रभा