बुझते दीयों को भी ऐहतराम चाहिए-“निरेन कुमार सचदेवा”

ज़रा अदब से उठाना इन बुझे दीयों को…….
इन्होंने कल रात सब को रोशनी दी थी, और जगमग सबकी ज़िंदगी की थी।
किसी को जला कर खुश होना अलग बात है, पर इन दियों की तो अलग ही जात है!
इन्होंने खुद को जला कर की थी रोशनी , तभी तो दिवाली की रात थी इतनी सुहानी, और वो रोशनी भी थी रूहानी।
वैसे भी दिवाली एक ऐसा है पर्व जिस पर हम सब को है नाज़ और गर्व।
सच्चाई की जीत दर्शाती है दिवाली , और इन दियों के कारण दिवाली बन गयी थी निराली।
मेरे लिए तो ये बुझे दिये भी हैं एक ख़ज़ाना, इन में निहित है एक प्रेम भरा अफ़साना।
पूछो क्यूँ, क्यूँकि इन दियों से आती मुझे देश की मिट्टी की है सुगन्ध , इसीलिए इन्हें देख मुझे मिलता है बहुत आनन्द।
मेरे देश की मिट्टी मेरे लिए पूजनीय है, और उस मिट्टी से बने ये दिए मेरे लिए दिव्य हैं और भव्य हैं।
ये दिये हमेशा रहेंगे मेरे दिल के क़रीब, इन्हें छू कर छूयूँगा मैं अपनी देश कीं मिट्टी को , निस्संदेह हूँ मैं ख़ुशनसीब।
इन दियों को मैं रखूँगा सम्भाल कर , और इन में तेल डाल निस दिन इन्हें जला कर प्रेम की लौ को मैं रखूँगा प्रज्ज्वलित।
इन दियों के माध्यम से मैं आख़िरी साँस तक अपने देश की मिट्टी को दूँगा अत्यधिक मान और सम्मान, जी हाँ , आख़िरी साँस तक , जब तक हूँ मैं जीवित!!!!!!!
लेखक——-निरेन कुमार सचदेवा।
I love ❤️ 🇮🇳 India, I am proud to be an Indian

1 Comment

  1. Kuldeep singh रुहेला

    बहुत सुंदर लिखा आपने

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