
अजब मुकाम पे ठहरा हुआ है काफिला जिंदगी का…
सुकून ढूढनें चले थे, नींद ही गवा बैठे…
क्या बताएँ यारों, कर बैठे ये ख़ता, महज़ नींद ही नहीं, चैन भी हमने दिया है गवा!
अब बेचैनी को ही हैं समझ बैठे ज़िन्दगी, सोचें तो कभी कभी होती है शर्मिन्दगी।
ये क़ाफ़िला ज़िन्दगी का, अब है डरा डरा———अब ज़हर मायूसी का ज़िंदगानियों में है भरा।
हार ना मानी नाकामयाबियों ने, अब क़ाफ़िला हमारा भर गया है शराबियों से ।
थी उदासी इतनी, बहुतों ने लिया शराब का सहारा, इन बेतहाशा उछलती गिरती लहरों को मिल ना रहा था किनारा।
अब हँसते हैं हम पर बाशिंदे , व्यंग कसते हैं —— कहते हैं सुकून ढूँढने का सवार था तुम पर जुनून।
इसीलिए अब हो बेज़ार , बेक़रार, सुकून का करते रहना ज़िन्दगी भर इंतज़ार ।
सच है, है घमासान अंधेरा, आजकल की दुनिया में ना कोई क़ायदा है ना क़ानून।
इस अजीब ओ गरीब क़ाफ़िले में अब शामिल हो गया है , बेचैनियों का सिलसिला।
क्या ढूँढने निकले थे और क्या है हमें मिला ?
झकड़े हुए हैं हम परेशानियों की गिरफ़्त में, पता नहीं क्या लिखा है उस ख़ुदा ने हमारी क़िस्मत में ।
जब लिखी होगी उस ख़ुदा ने हमारी क़िस्मत, तो शायद वो भी होगा बहुत नासाज़।
इसीलिए तो ख़ुशियों का हमारी ज़िंदगानियों में होता ही नहीं है आग़ाज़।
आख़िर क्या होगा इस दिशाहीन ज़िन्दगी का अंजाम, क्या मर कर भी हम यूँ ही तड़पते रहेंगे?
अब तो कब्र में भी शायद सुकून ना मिलेगा, मर कर भी हम भटकते रहेंगे , तड़पते रहेंगे , तरसते रहेंगे।
और नैनों से आंसू टपकते रहेंगे, बरसते रहेंगे———!!!!
लेखक – निरेन कुमार सचदेवा।
Our world 🌎 today is just full of misery and problems, that’s a fact !!!