महबूबा के दिये हुई ज़ख़्म भी अज़ीज़ होते हैं-“निरेन कुमार सचदेवा”

ला तेरे पैरों पर मरहम लगा दूँ, कुछ चोट तो तुझे भी आयी होगी , मेरे दिल को मार कर
ठोकर———
सोचता हूँ कि क्या मैंने कुछ ग़लत किया तुझे प्यार कर——-???
लेकिन फिर मैंने सोचा कि सच्ची प्रीत ग़लत नहीं हो सकती ——-सच्ची प्रीत की हमेशा होती है जीत।
आज तूने मेरे दिल पर है ठोकर मारी——-क्या पता कल तू मेरे साथ गा रही हो मधुर प्रेम
गीत——?
ख़ैर , अभी तो मैं तेरी चोट पर लगा देता हूँ अपने प्यार का मरहम—-कौन जाने इस मरहम की ख़ुशबू की सुगन्ध कर दे तेरे दिल को भी नर्म।
शायद इंतज़ार करना पड़ेगा मुझे, क्यूँकि अभी तो तेरे तेवर हैं बहुत गर्म।
तो आज वो मशहूर गीत गाता हूँ, हम इंतज़ार करेंगे तेरा क़यामत तक, ख़ुदा करे कि क़यामत हो और तू आये——-!!
मेरा दिल भी कितना पागल है, है घायल लेकिन फिर भी है तेरा क़ायल।
मेरा ज़मीर भी अब बन चुका है मेरे दिल का हमदर्द और बखूबी बाँट रहा है उसका दर्द।
लेकिन ये क्या, दिल है ज़ख़्मी लेकिन फिर भी कर रहा है मस्ती।
कहता है, चोट लगी को क्या, आख़िर किया है उसने मेरा स्पर्श, तो बहुत अहम हो गई है अब मेरी हस्ती।
सिर्फ़ वक़्त की बात है, ज़ख़्म तो आख़िर भर ही जाएँगे——-लेकिन दिल पर उस ज़ख़्म की रह जाएगी निशानी।
ये तेरी दे हुए शय है , तो ये निशानी होगी हमारे लिए रूहानी।
कुछ बदल सी गई है दिल की धड़कन, तेरे स्पर्श के कारण कुछ ज़्यादा आ गया है इस में अपनापन।
क्या तेरे पाँव का घाव भी तुझे सताएगा, क्या उस घाव को देख तुझे मेरी याद आएगी?
क्या फिर तू अपने मिज़ाज में बदलाव ला पाएगी?
अगर तू नहीं हुई मेरी तो मैं कर लूँगा आत्महत्या और पाप लगेगा तेरे सर, इतनी तो नहीं हो सकती तू निष्ठुर ।
अभी भी वक़्त है, मेरा ज़ख़्मी दिल भी तुझ पर है फ़िदा——-अब सीख ले वफ़ा।
और बन जा मेरी सदा के लिए , बहुत ख़ूबसूरत होगा वो बंधन ——फिर हमेशा हमेशा के लिए एक हो जाएँगे दो तन मन———!
लेखक——-निरेन कुमार सचदेवा

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