माया यह मरती नहीं-“डाॅ०अनिल गहलौत”

माया यह मरती नहीं, मर-मर ग‌ए शरीर।
सच सबको बतला गया, वह मर्मज्ञ कबीर।।

पथ में काँटे देखकर, होना नहीं निराश।
खोना नहीं विवेक निज, होना नहीं अधीर।।

दिखे विराजित राम जब, हुए सभी मुँह बंद।
मारुति ने दिखला दिया, वक्ष स्वयं का चीर।।

किया-धरा सब हो गया, छोटा अपने आप।
सम्मुख आ जब खींच दी, उससे बड़ी लकीर।।

अपने लिए न कुछ रखे, दे सब जग को बाँट।
ऎसा त्यागी व्यक्ति ही, कहलाता है पीर।।
डाॅ०अनिल गहलौत

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