
हर श्वास मोह-माया, के जाल से बुनी है।
प्राचीर प्राण की भी ,आसक्ति से चुनी है।
हे कृष्ण जी तुम्हीं तो,जग को सदा चलाते।
मन के सभी विकारों ,को भी तुम्हीं जलाते।
मिथ्या सकल जगत है,नाना प्रकार छलता।
जो प्रेम हैं दिखाते,उनमें दुराव पलता।
सम भाव से रहूँ मैं,सुख-दुख करो तिरोहित।
श्लाघा व कामना से,मन हो कभी न मोहित।
लगती कठिन डगर ये ,जग की बिना तुम्हारे।
छाये हुये अंधेरे,भगवन हरो हमारे।
हर साँस में तुम्हारे, ही नाम को सजा दो।
निष्काम -सी मनोहर,मुरली यहाँ बजा दो।
सुविधा पंडित