मेरी कलम मेरा इतिहास-“कुलदीप सिंह रुहेला”

कलम जब चलती है तो
शब्दो की कल्पना करती हैं
लिखती है मन की पाती को
तो शब्दो के बीज को बोती है।

कभी किसी के गम में
किसी के सुख में शामिल होती हैं
ये कलम भी जीवन के सपनो
में अक्सर खोती है

नई नई रचनाओं से देखो
ये सारे पन्नो को भिगोती है
चलती रहती है हर पल देखो
नए सफर को नया आकार देती है

रंग बिरंगे फूलों की तरह देखो
हर बागीचे को सिंचित करती हैं
कॉल पौरुष की तरह ये देखो
हर युग धर्म नगरी में चलती है

कलम परीक्षित करने को देखो
ये कलम काल सर्प से अक्षर में
निरंतर भविष्य निर्देशित करती हैं
ये कलम मिलकर इतिहास का निर्माण करती है!

कुलदीप सिंह रुहेला
सहारनपुर उत्तर प्रदेश
मौलिक अप्रकाशित रचना

1 Comment

  1. बहुत सुंदर लेखनी आपकी।हार्दिक बधाई।

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