
मेरी जिंदगी ही मेरी जिंदगी से खिलवाड़ कर रही है,
मेरे दिल के अरमानों के साथ चीरफाड़ कर रही है।
खुश रहने नहीं देती मुझको पल दो पल भी अक्सर,
आँखों में नमी लेकर हँसी के बंद किवाड़ कर रही है।
पास आती भी नहीं है और दूर जाने भी देती नहीं है,
मेरे मन के भीतर हर रोज वो नई मारधाड़ कर रही है।
हालात ए जिंदगी मेरे बद से बदतर होते जा रहे हैं,
आकर देखो जरा अंदर ही अंदर उजाड़ कर रही है।
“विकास” भी अब चुपचाप देख रहा है तमाशे सारे,
सुकून न आ सके जिंदगी में ऐसी वो बाड़ कर रही है।
©® डॉ विकास शर्मा