
अतुलनीय व्यक्तित्व पिता का, पल में पीड़ा हरते थे ।
प्रतिपल ही खुशियों से मेरी,बाबुल झोली भरते थे।।
जीवन भर संघर्ष किया, सदा समर्पित भाव भरा ।
जो भी दरपर इच्छुक आता,सबके प्रति था चाव भरा।।
खाली कोई नहीं लौटता, सहयोग सदा ही करते थे।
अतुलनीय व्यक्तित्व पिता का, पल में पीड़ा हरते थे।।
संस्कारों में अनुशासन था,धरम आस्था थी गहरी।
पूजा-पाठ नियम संयम था, बने रहे सबके प्रहरी।।
ऊपर से अतिशय सख्त किन्तु,उर से कोमल रहते थे ।
अतुलनीय व्यक्तित्व पिता का,पल में पीड़ा हरते थे।।
जबसे गए छोड़ हम सबको,जिम्मेदारी आन पड़ी।
सिर से साया उठा हमारे,मुश्किल द्वारे आन खड़ी।।
मेरे पिता अनोखे जग से, सबसे अच्छे लगते थे।
अतुलनीय व्यक्तित्व पिता का,पल में पीड़ा हरते थे।।
मंदिर पाँच रहे बनवाए ,मात पिता के नाम किए।
गया गजाधर देश भ्रमण कर, दर्शन चारों धाम किए।।
साहस शौर्य पराक्रम अनुपम,नहीं किसी से डरते थे।
अतुलनीय व्यक्तित्व पिता का,पल में पीड़ा हरते थे।।
जहाँ बसे हो पिता वहीं से, बनकर ढाल सदा रहना।
नतमस्तक हो वंदन करती,आशीष बनाए रखना।
वही हाथ गीता के सिर हो, जीवित रहते धरते थे।
अतुलनीय व्यक्तित्व पिता का पल में पीड़ा हरते थे।।
डॉ गीता पाण्डेय अपराजिता
रायबरेली उत्तर प्रदेश
9415 718838