
मेरे पिता मेरी प्रेरणा, जीवन का आधार है।
उच्च संस्कारों से है सींचा,पिता के अनंत उपकार है।
जीवन की उजली धूप में, पिता का घना साया।
पीपल की घनी छांव, कड़ी धूप में शीतल छाया।
दुख के बादलों में गर, कभी तुम घिर जाओ।
डगमग डगर जीवन की, राह चलते तुम गिर जाओ।
उंगली थाम के पिता ने ही मंज़िल तक पहुंचाया।
दिन रात करके मेहनत, करते वो हर ज़िद्द पूरी।
चाहे कुछ भी हो फरमाइश,तुम्हारी ख्वाहिश ना रहे अधूरी।
पेट औलाद का भर के, खुद भूखे पेट है सोया।
हर पिता चाहे अपने बच्चों का भविष्य संवारना।
जिंदगी के हर सुख दुख से बच्चों को रूबरू कराना।
गोद में बिठा प्यार से ,जीवन का गणित समझाया।
नरम दिल रखते सीने में, ऊपर से वो है सख़्त।
पिता ही मज़बूत आधार,चाहे समझो कड़वा नीम का दरख़्त।
मिठास भर दे जीवन में, बरगद सी वो विशाल काया।
स्वरचित- प्रिती धीरज जैन “धीरप्रीत” इंदौर मध्यप्रदेश ✍🏻✍🏻