मैं नारी।
जन्मदात्री सकल मानव जन की।
कोमल हृदय ममतामयी,
बच्चों का लालन-पालन करती।
सुसंस्कारों से उन्हें सजाती।
शिक्षा दे सुजान बनाती।।
ब्रह्मा ने रचा मुझको,संवारा दिव्य गुणों से।
यद्यपि कोमलांगी नाजुक बदन मैं।
तथापि विकट संकट आए जबभी;
काली , दुर्गा बन सामना हर आफत का करती।
नहीं किसी से मैं डरती।।
साहस, हिम्मत, हौसलों से सदा लबरेज रहती।
सूझबूझ से हर मुश्किल सुलझाती।
घर -परिवार, कार्यालय की
जिम्मेदारियाँ बखूबी संभालती।।
कहते मुझको ‘नर ‘ से भारी।
एकल मात्रा से बना ‘नर’ है।
” नारी ” में दो-दो मात्राएँ।
वजनदार, असरदार।।
अगम्य दुर्गम क्षेत्रों तक भी
पहुँच मैंने अपनी बनाई।
अपनी शक्ति का लोहा मनवाया।
हर क्षेत्र में परचम लहराया।।
चंद्रकला भरतिया
नागपुर महाराष्ट्र.