
निखरी कहाँ – कहाँ से इकट्ठा करूँ, “ऐ ज़िन्दगी “ तुझको…
जिधर भी देखूँ, “तू ही तू” बिखरी पड़ी है…
और तू मुझे सताएगी बहुत, ऐसी ज़िद पे भी अड़ी है।
लेकिन मैं फिर भी हौंसला कर रहा हूँ, हाँ मानता हूँ कि ये मुश्किल घड़ी है।
बेतहाशा सवालों की भी लगी मन में झड़ी है ।
लेकिन , मैं हार नहीं मानने वाला, मुझ से अपनों को आशाएँ बड़ी है !
देख तू है अभी “बिखरी बिखरी”, मैं चलाऊँगा एक ऐसी जादू की छड़ी कि तू अगले ही पल होगी “ निखरी निखरी !
फिर तुझे सुनाऊँगा मैं खरी खरी ।
हर कोने से में तुझे करूँगा मैं इकट्ठा।
कैसे ज़िन्दगी को बनाते हैं खूबसूरत, फिर तुझे दूँगा मैं ये दिखा।
दोस्तों, मैं कामयाब हूँ, मेरे लिये करना दुआ।
निस दिन इबादत करता हूँ, अब यकीनन मेरा मार्ग दर्शन करेगा मेरा ख़ुदा।
ऐ नादान ज़िन्दगी, मैं और तू कभी हो ही नहीं सकते जुदा।
और मैं तुझे कभी भी ना होने दूँगा अपने से ख़फ़ा ।
फिर तुझे भी मुझ से निभानी पड़ेगी वफ़ा ।
ये है मेरा तुझ से वादा और अटल है मेरा इरादा !!!!
लेखक निरेन कुमार सचदेवा ।
Difficult 😞 times come in life , but all shall end well for sure .