ये भूख भी क्या शय है-“निरेन कुमार सचदेवा”

भूखे का पेट,मज़हब क्या जाने, जो दे निवाला, उसे ही ईश्वर माने……..
एक भिखारी से किसी ने पूछा , क्या है तुम्हारा दीन……किस मालिक की छत्र छाया के नीचे तुम हो आधीन?
वो बोला , पता नहीं हिंदू हूँ या मुसलमान, लेकिन एक रोटी का टुकड़ा मिल जाए…… अभी तो यही है मेरा अरमान!
जवाब सुन दिल भर आया, पता नहीं ऊपर वाले की है कैसी ये माया?
अमीरों के कुत्ते भी खाते हैं स्वादिष्ट bites, और कुछ बदनसीब सोते हैं भूखे।
स्वादिष्ट व्यंजन की तो बात ही छोड़ो, उनकी क़िस्मत में नहीं होते कुछ टुकड़े रुखे सूखे……
भूख हो सब को लगती है, लेकिन भूखे सोना…..ये ग़रीबों के साथ होता है अक्सर।
और इन बेजारों के हालात होते जा रहें हैं बद से बदतर।
ना है कोई कमाई , और उस पर ये कमर तोड़ महंगाई……..इनकी ज़िंदगानियों में हैं बस दुःख और दर्द।
मौला मेरे , सुन रहा है ना तू, देख रहा है ना ये अत्याचार, तू ही बन के दिखा इनका हमदर्द।
तेरे सिवा इन बेचारों का नहीं है कोई सहारा, तू ही इनकी डूबती नाँव को दे किनारा।
और आजकल तो वैसे भी चल रहा है घमासान युद्ध , आजकल की ज़िंदगानियाँ ही हो गयीं हैं अशुद्ध।
अनेकों मासूम लोग हो गए है बेघर , और भटक रहें हैं इधर उधर।
मालिक मेरे , दे इन सियासतों के मालिकों को सदबुद्धि, युद्ध कभी भी नहीं हो सकता हल किसी भी समस्या का……..
बहुत बाशिंदे करते हैं तेरी इबादत, तेरी पूजा……उनकी परेशानियों का समाधान ढूँढ तू , इतना तो सिला दे उन्हें उनकी तपस्या का…..
कवि———निरेन कुमार सचदेवा
We all live in a grossly unfair world !!

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