
आपने लंगट सिंह कॉलेज, मुज़फ़्फ़रपुर का नाम सुना होगा। इसके संस्थापक थे लंगट सिंह। सन 1899 में इस कॉलेज की नींव उन्होंने रखी मगर तब इसका नाम ‘भूमिहार ब्राह्मण कॉलेजियट स्कूल’ था।
चौंकाने वाली बात यह कि जिस जमाने में राजा जमींदार लोग शिक्षण संस्थान बनवाते थे, उस समय लंगट सिंह नामक मुज़फ़्फ़रपुर के धरहरा ग्राम में जन्मे तथा रेलवे कुली की नौकरी कर रहे 49 वर्षीय व्यक्ति ने इस कॉलेज की स्थापना की। इतना ही नहीं, BHU की स्थापना में उन दिनों 1,00,000 रुपये की मदद दी। वहां ये महाराजाधिराज रामेश्वर सिंह के बुलावे पर गए थे।
मात्र कक्षा 4 तक पढ़ाई करनेवाले इन महापुरुष ने उच्च शिक्षा प्राप्त करने वालों के लिए इतना कुछ किया।
ये किसान परिवार में जन्म लिए थे। अल्प शिक्षा के बाद दरभंगा समस्तीपुर रेल लाइन पर टेलीफोन सेक्शन में काम करने लगे। आपने ग्रीयर विल्सन नामक अंग्रेज इंजीनियर को अपनी मेहनत और मितभाषिता से मोह लिया। इस कारण उनकी कृपादृष्टि बन गई। उनकी पत्नी ने भी इन्हें मदद की और रेलवे-टेलीफोन की ठेकेदारी मिल गई। लगभग साढ़े 7 वर्ष की इस नौकरी में वे कमाई की ऊंचाई पर थे।
जब दरभंगा नरेश उन्हें बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना से पूर्व होनेवाली मीटिंग में लेकर गए तब लंगट सिंह की पहचान एक छोटी मोटी हस्ती के रूप में थी। बैठक के समय जब विश्वविद्यालय निर्माण हेतु चंदे की बात चलने लगी तब महामना पंडित मदन मोहन मालवीय प्रभृति विद्वानों और कुछ समर्थवान लक्ष्मीपुत्रों के सामने उन्होंने एक लाख रुपये दान देने का प्रस्ताव रखा। उस समय उस सभा में उपस्थित सभी विद्वतजनों की आंखें फटी रह गई थी।
सन 1899 में जब मुज़फ़्फ़रपुर में भूमिहार ब्राह्मण महासभा की बैठक इनके नेतृत्व में चल रही थी तब इन्होंने भूमिहार ब्राह्मण कॉलेजियट के लिए 13 एकड़ जमीन और आर्थिक सहायता देने का भी वचन दिया।
ऐसी विभूतियों की चर्चा कम ही होती है। बिहार इन्हें सिर्फ कॉलेज के नाम से ही जानता है। इनकी जीवनी प्रथम बार रामवृक्ष बेनीपुरी ने लिखा। इस लंगट सिंह कॉलेज में कभी रामधारी सिंह दिनकर व्याख्याता के पद पर नौकरी करते थे।
नाम अज्ञात