
कभी कभी मन में ये ख़याल आता है कि एह काश कि मैं वक़्त के इस चक्रव्यूह को उलटी दिशा में घुमा पाऊँ , सिर्फ़ इसलिए कि मैं उन बीते पलों का एक बार फिर से आनंद उठा पाऊँ ।
अब मुझे अहसास हुआ है कि उन गुज़रे पलों की कितनी थी अहमियत , वो पल थे बेशक़ीमत , एक बार दोबारा से उन गुज़रे पलों को जीने की है मेरी दिली हसरत।
वो माँ की गोद , मैंने हँसना तो माँ ने भी मुस्कुराना , मैंने रोना तो माँ के चेहरे का रंग
उड़ जाना ।
वो माँ का अपने लबों से मुझे चूमना , मुझे सहलाना , मुझे नहलाना , कंगी से मेरे बालों को सँवारना , मुझे कपड़े पहनाना ।
स्कूल के home work के लिए घंटों मेरे साथ माथा पच्ची करनी , ABCD और क, ख , ग सिखाना , याद आ आ कर बहुत सताता है मुझ को वो गुज़रा ज़माना ।
वो अपने छोटे छोटे कंधों पर स्कूल बैग का बोझ ला कर स्कूल जाना , और स्कूल से वापस आते ही माँ के आँचल से लिपट जाना , देर से उठना और माँ को सताना , याद आ आ कर बहुत तड़पाता है मुझे वो गुज़रा ज़माना ।
नर्सरी स्कूल में पढ़ाई कम , ज़्यादा करते थे सब बच्चे शरारतें , छोटे छोटे बच्चे toffee तक के लिए लड़ाइयाँ करते थे , एक दूसरे को थे मारते ।
फिर वो पहला दिन कॉलेज का , उन दिनों ragging का बहुत था चलन ,कॉलेज पहुँचते ही senior पकड़ कर ले जाते थे , शुक्र किया था मैंने जब ये सिलसिला ख़त्म हुआ , ragging से ऊब गया था मेरा मन ।
स्कूल और कॉलेज के वातावरण में बहुत फ़र्क़ था , कॉलेज जाने के बाद अहसास हुआ ज़िम्मेवारी का ।
कितनी मुश्किलें से झूझते हैं माँ बाप बच्चों के लिए , अहसास हुआ उनकी ज़िम्मेदारी का , समझदारी का ।
फिर नौकरी मिल गयी , एक बार फिर से हाथों में थामना चाहता हूँ वो पहली तनखाह।
घर आते ही म बाप के पाँव छुए थे मैंने , पैसे माँ के हाथों में रख दिए , माँ अपने आँसू ना रोक पायी और बोली , वाह बेटा वाह ।
एक बार फिर से मैं ये वाक़या दोहराना चाहता हूँ , लेकिन ये मेरा सपना कभी भी पूरा नहीं हो सकता , क्यूँकि मेरे माँ बाप बहुत साल पहले मुझे छोड़ कर चले गए हैं वहाँ , कोई भी नहीं मिल सकता उनसे जहाँ ।
साथी नहीं बदलना चाहता , लेकिन वो सात फेरे मैं फिर से लेना चाहता हूँ , और इस बार पंडित जी को कोई रिश्वत नहीं देना चाहता हूँ ।
जवानी का जोश था, अल्हड़ उम्र में हो गयी थी शादी , फेरे जल्दी से निपट जायें , इसके लिए पंडित जी को दी थी रिश्वत ।
लेकिन इस बार सुनूँगा सारे वचनों को ध्यान से , अब जानता हूँ उन वचनों की क़ीमत ।
वो सातों फेरे लेना चाहता हूँ धीरे धीरे , इन फेरों में छिपे हुए हैं हज़ारों जज़्बात , इन फेरों की है कुछ अलग ख़ास बात ।
वो पहली होली , पहली दीवाली , इन त्योहारों को मैं फिर से मनाना चाहता हूँ , एक आलौकिक आनंद पाना चाहता हूँ ।
एह काश कि मेरी बिटिया फिर से एक छोटी सी गुड़िया बन जाए , मैं उसके साथ और ज़्यादा वक़्त बिताना चाहता हूँ , उसे अपनी बाहों में झूला झुलाना चाहता हूँ ।
इस बार उसकी ज़िद के आगे मैं जल्दी घुटने टेक दूँगा , ख़ुद भी हँसूँगा , उसे भी हँसायूँगा।
या खुदा मुझे कुछ और वक़्त देना जीने के लिए , मैं लम्बी उम्र इसलिए नहीं माँग रहा कि मुझे लालसा है ज़्यादा जीने की , बल्कि इसलिए क्यूँकि मैं बाक़ी की उम्र कोई नेक काम करने में बिताना चाहता हूँ ।
किसी के आँसू पोंछना चाहता हूँ , किसी बेसहारे का हाथ थामना चाहता हूँ ।
किसी जरूरतमंद के काम आना चाहता हूँ , किसी के उदास चेहरे पर मुस्कुराहट लाना चाहता हूँ ।
दोस्तों हर पल अहम है , एक पल भी ना गँवाना , ये ज़िंदगी है ईश्वर का दिया हुआ एक नज़राना ।
जो वक़्त बीत गया है वो तो वापस नहीं आएगा , लेकिन जो आज और कल हैं आप के पास , उन्हें पकड़ के रखना , जकड़ के रखना ।
तो वादा करो मुझ से कि ख़ुशनुमा बिताओगे तुम बाक़ी की उम्र सारी ।
तो अभी से हर पल को जीना भरपूर , जीना हंस कर , जीना मस्ती में , ख़ुशी को बना लो ख़ुमारी ।
लेखक निरेन कुमार सचदेवा