सौर संस्कृति और मकर संक्रांति-“सत्येन्द्र कुमार पाठक”

सनातन धर्म संस्कृति एवं ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भगवान सूर्य उतरायण में मकर पर आने के कारण मकर संक्रांति कहा गया है। भगवान सूर्य मकर संक्रांति के दिन सूर्य उत्तरायण और मकर राशि में प्रवेश 77 वर्ष अर्थात 15 जनवरी 1947 ई. के बाद 15 जनवरी 2014 को वरीयान योग , , रवि योग का संयोग और बुध एवं मंगल धनु राशि मे विराजमान होने तथा मकर संक्रांति पर 3 राशियों पर पलटने के कारण दुर्लभ संयोग बनने जा रहा है । खरमास की समाप्ति होती है ।. सूर्य के उत्तरायण होने पर खरमास भी समाप्त होगा और मांगलिक कार्य शुरू हो जाएंगे. मकर संक्रांति बहुत खास मानी जा रही है क्योंकि इस दिन सालों बाद कुछ दुर्लभ योग का संयोग बन रहा है । मकर संक्रांति का दिन सूर्य की पूजा के लिए विशेष होता है. । राजनीति, लेखन में कार्य कर रहे लोगों के लिए लाभदायक होती है.। मकर संक्रांति 15 जनवरी 2024 सोमवार को वरीयान योग प्रात: 2 बजकर 40 मिनट से लेकर रात 11 बजकर 11 मिनट तक तथा रवि योग -सुबह 07 बजकर 15 मिनट से लेकर सुबह 08 बजकर 07 मिनट तक रहेगा रहेगा ।
पांच साल व 2019 के बाद मकर संक्रांति सोमवार के दिन पड़ने से भगवान सूर्य संग भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होगा । सिंह राशि – मकर संक्रांति पर सूर्य का उत्तरायण आपके लिए किसी वरदान से कम नहीं होगा. रवि और वरीयान योग का संयोग करियर में आपको सफलता के साथ संपन्नता भी प्रदान करेगा. नौकरीपेशा लोगों के कार्य में वृद्धि होगी, नई जिम्मेदारियां मिलेंगी जो लंबे समय तक शुभ परिणाम दे सकती हैं. व्यापार में बढ़ोत्तरी के प्रबल योग है. वैवाहिक जीवन में खुशियां लौटेंगी और लव पार्टनर से रिश्ते मधुर होंगे. ।मेष राशि – मकर संक्रांति पर सूर्य मेष राशि के 10वें भाव में प्रवेश करेंगे. कुंडली का ये भाव करियर और व्यवसाय से जुड़ा होता है. ऐसे में मकर संक्रांति पर बन रहे शुभ संयोग का आपको धन और प्रतिष्ठा में लाभ देगा. कार्यक्षेत्र में आपका मान-सम्मान बढ़ेगा. उन्नति में आ रही बाधाएं दूर होंगी. सैलेरी में वृद्धि के संकेत हैं. बिजनेस में पार्टनरशिप के काम में कामयाबी मिलेगी. । मीन राशि – मीन राशि वालों के लिए मकर संक्रांति बहुत लाभदायी रहेगी. इस दौरान आपकी आय के स्त्रोत बढ़ेंगे. लंबे समय से व्यापार को लेकर चल रही डील फाइनल हो सकती है. लव लाइफ भी पहले से और बेहतर होगी. वर्कप्‍लेस पर बहुत ही बेहतरीन माहौल रहेगा, लोग आपके काम की तारीफ करेंगे. नौकरी के संबंध में अच्‍छा प्रस्‍ताव मिल सकता है।पौष मास , जनवरी माह के चौदहवें या पन्द्रहवें दिन भगवान सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करने के कारण मकर संक्रांति है। तमिलनाडु में पोंगल , कर्नाटक, केरल,तेलंगाना तथा आंध्र प्रदेश में संक्रांति , उत्तरप्रदेश एवं बिहार में ‘तिला संक्रांत’ , उत्तरायण , मकर संक्रांति भी कहते हैं। 14 जनवरी के बाद से भगवान सूर्य उत्तर दिशा की ओर अग्रसर होने के कारण ‘उतरायण’ कहते है। वैज्ञानिक पद्धति के मुख्य कारण पृथ्वी का निरंतर 6 महीनों के समय अवधि के उपरांत भगवान सूर्य उत्तर से दक्षिण की ओर जाने के कारण होता है। मकर संक्रांति छत्तीसगढ़, गोआ, ओड़ीसा, हरियाणा, बिहार, झारखण्ड, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर,राजस्थान, सिक्किम, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, पश्चिम बंगाल, गुजरात और जम्मू ताइ पोंगल, उझवर तिरुनल : तमिलनाडु , उत्तरायण : गुजरात, उत्तराखण्ड , उत्तरैन , माघी संगरांद : जम्मू , शिशुर , सेंक्रात : कश्मीर घाटी , माघी : हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, पंजाब ,भोगाली बिहु : असम , खिचड़ी : उत्तर प्रदेश और पश्चिमी बिहार , पौष संक्रान्ति : पश्चिम बंगाल ,मकर संक्रमण : कर्नाटक , उत्तर प्रदेश में , चुड़ा दही , तील , गुड़ , खिचड़ी , बांग्लादेश :में शकरैन , पौष संक्रान्ति , नेपाल में माघे संक्रान्ति या ‘माघी संक्रान्ति’ ‘खिचड़ी संक्रान्ति’ , थाईलैण्ड में सोंगकरन , लाओस में : पि मा लाओ , ,म्यांमार :थिंयान ,कम्बोडिया : मोहा संगक्रान ,श्री लंका : पोंगल, उझवर तिरुनल ,नेपाल में मकर-संक्रान्ति कहा जाता है। नेपाल में मकर संक्रांति को माघे-संक्रांति (माघे-संक्रान्ति), सूर्योत्तरायण और थारू समुदाय में ‘माघी’ , नेपाल सरकार सार्वजनिक छुट्टी देती है। नदियों के संगम पर लाखों की संख्या में नहाने के लिये जाते हैं। तीर्थस्थलों में रूरूधाम (देवघाट) व त्रिवेणी मेला लगता है। मकर संक्रान्ति के अवसर पर आन्ध्र प्रदेश और तेलंगण राज्यों में विशेष ‘भोजनम्’ का आस्वादन , मकर संक्क्रान्ति के अवसर पर मैसुरु में एकगाय को अलंकृत किया गया है। जम्मू में उत्तरैन’ और ‘माघी संगरांद , उत्रैण, अत्रैण’ अथवा ‘अत्रणी’, माघी संगराद , डोगरा घरानों में इस दिन माँह की दाल की खिचड़ी का मन्सना (दान) के उपरांत माँह की दाल की खिचड़ी को खाया जाता है। इसलिए इसको ‘खिचड़ी वाला पर्व’ भी कहा जाता है। जम्मू में ‘बावा अम्बो’ जी का जन्मदिवस मनाया जाता है। उधमपुर की देविका नदी के तट पर, हीरानगर के धगवाल में और जम्मू के अन्य पवित्र स्थलों पर पुरमण्डल और उत्तरबैह्नी पर मेले लगते है भद्रवाह के वासुकी मन्दिर की प्रतिमा को आज के दिन घृत से ढका जाता है।उत्तर प्रदेश का प्रयागराज में गंगा, यमुना व सरस्वती के संगम पर प्रत्येक वर्ष एक माह तक माघ मेला को माघी नाम से जाना जाता है। गोरखपुर के गोरखनाथ मंदिर में खिचड़ी खाने एवं खिचड़ी दान देने का अत्यधिक महत्व है। बिहार में मकर संक्रान्ति को खिचड़ी , उड़द, चावल, तिल, चिवड़ा, गौ, स्वर्ण, ऊनी वस्त्र, कम्बल आदि दान करने का अपना महत्त्व है। महाराष्ट्र में विवाहित महिलाएँ अपनी पहली संक्रान्ति पर कपास, तेल व नमक आदि चीजें अन्य सुहागिन महिलाओं को दान करती हैं। तिल-गूल नामक हलवे के बाँटने की प्रथा है। बिहारवासी दिन में दही चुरा खाकर और रात के समय उरद दाल और चावल की खिचड़ी बनाकर , लाई या ढोंढा चुरा या मुरमुरे का लड्डू का महत्व है। बंगाल में स्नान के पश्चात तिल दान करने की प्रथा है। गंगासागर में प्रति वर्ष विशाल मेला लगता है। मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगा जी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं। मकर संक्रांति के दिन यशोदा ने श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के लिये व्रत किया था। गंगासागर में स्नान-दान के लिये लाखों लोगों की भीड़ होती है। लोग कष्ट उठाकर गंगा सागर की यात्रा करते हैं।
तमिलनाडु में पोंगल के रूप में चार दिन तक मनाते हैं। प्रथम दिन भोगी-पोंगल, द्वितीय दिन सूर्य-पोंगल, तृतीय दिन मट्टू-पोंगल अथवा केनू-पोंगल और चौथे व अन्तिम दिन कन्या-पोंगल मानते हैं। इस प्रकार पहले दिन कूड़ा करकट इकठ्ठा कर जलाया जाता है, दूसरे दिन लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है और तीसरे दिन पशु धन की पूजा की जाती है। पोंगल मनाने के लिये स्नान करके खुले आँगन में मिट्टी के बर्तन में खीर बनायी जाती है, जिसे पोंगल कहते हैं। इसके बाद सूर्य देव को नैवैद्य चढ़ाया जाता है। उसके बाद खीर को प्रसाद के रूप में सभी ग्रहण करतहै।असम में मकर संक्रान्ति को माघ-बिहू अथवा भोगाली-बिहू के नाम से मनाते हैं। राजस्थान में सुहागन महिलाएँ अपनी सास को वायना देकर आशीर्वाद प्राप्त करती हैं। महिलाएँ सौभाग्यसूचक वस्तु का चौदह की संख्या में पूजन एवं संकल्प कर चौदह ब्राह्मणों को दान देती हैं। देवभूमि उत्तराखंड में इस मुख्य पर्व मकर सक्रांति को घुघुतिया त्योहार के नाम से जाना जाता है। उत्तराखंड के लोग अपने दिन की शुरुआत सुबह नहाने से करते हैं। घर की महिलाओं द्वारा रसवाडें को मोल मिट्टी की सहायता से लिपाई पुताई की जाती है। उसके बाद सभी लोगों द्वारा अपने घर के देवता स्वरूप देवी देवताओं की पूजा की जाती है। और दिन के भोजन में घुघुतिया बनाए जाते हैं। घुघुतिया आटे की सहायता से बनाए जाते हैं। जिसमें विभिन्न प्रकार की आकृतियों के माध्यम से घुघुतिया तैयार किए जाते हैं। घुघुतिया को परिवार के छोटे बच्चों द्वारा कागा (कौवा) अपने हाथ के माध्यम से खिलाया जाता है। जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है। ऐसी धारणा है कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है। इस दिन शुद्ध घी एवं कम्बल का दान मोक्ष की प्राप्ति करवात है। माघे मासे महादेव: यो दास्यति घृतकम्बलम। स भुक्त्वा सकलान भोगान अन्ते मोक्षं प्राप्यति॥। मकर संक्रान्ति के अवसर पर गंगास्नान एवं गंगातट पर दान को अत्यन्त शुभ माना गया है। इस पर्व पर तीर्थराज प्रयाग एवं गंगासागर में स्नान को महास्नान की संज्ञा दी गयी है। सामान्यत: सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं,के स्वामी एवं न्याय देव किन्तु कर्क व मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश धार्मिक दृष्टि से अत्यन्त फलदायक है। यह प्रवेश अथवा संक्रमण क्रिया छ:-छ: माह के अन्तराल पर होती है। भारत देश उत्तरी गोलार्ध में स्थित है। भारतीय पंचांग पद्धति की समस्त तिथियाँ चन्द्रमा की गति को आधार मानकर निर्धारित की जाती हैं, किन्तु मकर संक्रान्ति को सूर्य की गति से निर्धारित किया जाता है। मकर संक्रांति का उत्सव भगवान सूर्य की पूजा के लिए समर्पित है. भक्त इस दिन भगवान सूर्य की पूजा कर आशीर्वाद मांगते हैं ।वसंत ऋतु की शुरुआत और नई फसलों की कटाई शुरू होती है. मकर संक्रांति पर भक्त यमुना, गोदावरी, सरयू और सिंधु नदी में पवित्र स्नान करते हैं और भगवान सूर्य को अर्घ्य देते हैं ।यमुना स्नान और जरूरतमंद लोगों को भोजन, दालें, अनाज, गेहूं का आटा और ऊनी कपड़े दान करना शुभ माना जाता है। मकर संक्रान्ति के अवसर पर भारत के विभिन्न भागों में, गुजरात में, पतंग उड़ाने की प्रथा है। भगवान भास्कर अपने पुत्र मकर राशि के स्वामी एवं न्याय देव शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं। मकर संक्रान्ति के दिन गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं।
करपी , अरवल , बिहार 804419

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