
हँसते हुए चेहरे का दर्द जान सका नहीं कोई,
अंदर से बिखर चुका हूँ मान सका नहीं कोई।
जिससे कहा हाल ए दिल, वो ही हँस दिया,
दिल के दर्द को भी पहचान सका नहीं कोई।
हर पल हर घड़ी जज्बातों से खेलती रही वो,
बना झूठी कहानी, झूठा दर्द झेलती रही वो।
मैं समझता रहा सच्ची मोहब्बत है उसे भी,
पर घर जलाकर मेरा तमाशा देखती रही वो।
किस्मत का दोष नहीं, कमी मोहब्बत में थी,
जिस संग दिल लगा उसकी सोहबत में थी।
लाख मिन्नतें की मत जाओ मुझे छोड़कर,
बोली जमाने के डर से जान मुसीबत में थी।
“विकास” खड़ा देखता रहा उसे जाते हुए,
दिल तोड़कर मेरा मंद मंद मुस्कुराते हुए।
खाकर धोखा चेहरे पर नकाब चढ़ा लिया,
बस जी रहा हूँ मैं अब औरों को हँसाते हुए।
©® विकास