हर दिल में खुदाई है-“एच. एस. चाहिल”

हर दिल में खुदाई है, रुसवा न करो दिल को।
उल्फत न सजे फिर भी मिटने तो न दो दिल को।

हर दिल की मुहब्बत पे दुनिया के सितम होते,
हो दिल भी मुकम्मल तो, तकलीफ न हो दिल को।

जज्बात बनाता दिल फिर खुद ही मिटा देता,
शिद्दत न मिटी हो तब महबूब कहो दिलों को।

मासूम मुहब्बत में अहसास अहम होते,
जब प्यार किया है तो, कहता जो सहो दिल को।

लम्हों में सजा करती हो दिल में अगर उल्फत,
कहता ये “चहल” सबको उल्फत से भरो दिल को।

स्वरचित/मौलिक रचना।
एच. एस. चाहिल। बिलासपुर। (छ. ग.)

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