अपदांत सजल-“डाॅ०अनिल गहलौत”

पड़े समय का कड़ा तमाचा, दिन में दिखते तारे।।
कितने बिगड़े हाथी इसने, सीधे किए, सुधारे।।

अहंकार ने, हठधर्मी ने, सदा धूल चाटी है।
टूटी जंघा दुर्योधन की, रावण के बल हारे।।

ऊपर वाले की लाठी में, है आवाज न कोई।
देखे बड़े-बड़े फन्ने खाँ, फिरते मारे-मारे।।

रह जाती है धरी सभी की, चतुराई चालाकी।
समय बली जब लेता करवट, बनें फूल अंगारे।।

घुसा बाढ़ का पानी घर में, भगदड़ मची भगे सब।
अपनी-अपनी पड़ी सभी को, किसको कौन उबारे।।

रामराज्य मोड़ता नहीं है, उँगली उठी प्रजा की।
नहीं रुका जाता कान्हा से, जब द्रौपदी पुकारे।।
—-डाॅ०अनिल गहलौत

1 Comment

  1. Ritu jha

    Waah waah khoob 👌👌✍️✍️

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