अपनापन सा लगता है-“निरेन कुमार सचदेवा”

जब से मैंने देखा तुमको,
अपनापन सा लगता है l
रजनी सजनी सी लगती है,
दिन दुल्हन सा लगता है ll

छूमंतर है पीर पराई,आती है अंगड़ाई सी l
रोम रोम रोमांचित होता, तरुणाई उफनाई सी ll

ले खुशबू बहती पूरबाई ,
क्यों अच्छा सा लगता है l
जब से मैंने तुमको देखा,
अपनापन सा लगता है ll

दूर देश के दो रहवासी, ऐसे कैसे पास हुए l
प्रेम परस्पर करने वाले ,तम के लिए प्रकाश हुए ll

एक दूसरे के बिन जीवन,
सूना सूना लगता है l
जब से मैंने देखा तुमको,
अपनापन सा लगता है ll

जीवन का संसार तुम्हीं हो, जीवन का आधार तुम्हीं l
तुममे भावी सृजन समाहित, मेरा पहला प्यार तुम्हीं ll

प्रणय निवेदन का प्रतिवेदन,
आवेदन सा लगता है l
जब से मैंने तुमको देखा,
अपनापन सा लगता है ll

तुम कोरा कागज मैं स्याही, मिल कविता-संसार लिखें l
जहां जहां अंगार बिछा है, वहां वहां शृंगार लिखें ll

जो सुन्दर सपना देखा है ,
वो सार्थक सा लगता है l
जब से मैंने तुमको देखा,
अपनापन सा लगता है ll

ग्राम कवि सन्तोष पाण्डेय “सरित” गुरु जी

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