
किसी और के लिए जलना , और अपने आप को जलाना , ये काम नहीं हैं आसान , चाहे आप बेजान हों या आप में हो जान ।
मानता हूँ मैं कि दीये बेजान हैं और परवानों में होती है जान , लेकिन मेरी नज़र में दोनो ही हैं महान ।
सबब जलने का थोड़ा फ़र्क़ है , दीये जलते हैं इंसानियत के लिए , और परवाने जलते हैं इश्के मोहब्बत के लिए ।
आफ़रीन हैं दोनो की अदा , मेरे मन में दोनो के लिए असीम इज़्ज़त है, और ये दुनिया भी दोनो को अदब बख्शे , ये मेरी दिली हसरत है ।
ये दीये ख़ुद को जला कर रोशन करते हैं दुनिया , और इनकी इसी अदा पर मैं हूँ फ़िदा ।
ये दिए दूसरों के लिए जलते हैं , लेकिन दूसरों से नहीं जलते ,ये अहसास वंदनीय है , प्रशंसनीय है !
तो दिवाली के अगले दिन , जब आप इन बुझे दीयों को उठाना , तो इन्हें ऐहतराम से उठाना , इनके कारण ही उजागर हुआ था आपका ज़माना ।
परवाने भी अपने आप में क़ायम करते ये मिसाल हैं , आख़िर क्या मिलता है इन्हें यूँ ख़ाक बन कर , बहुत बार दिल में उठता ये सवाल है ?
परवानों की ये फ़ितरत , जुनूने इश्क़ की पैदाईश है , जुनून इस हद तक सवार है उन पर कि उन्हें जल जल कर मरने की ख़्वाहिश है !
और मिट्टी के दीये फिर जलने के बाद फिर मिट्टी में मिल जाते हैं , लाजवाब हैं ये दीये , किस ख़ूबसूरती से ये मिट्टी से अपना रिश्ता निभाते हैं ।
परवानों की क़िस्मत में उस मौला ने यही लिखा है क अगर उन्हें ख़ुशी चाहिए तो उन्हें जलना पड़ेगा , और आलौकिक ख़ुशी पाने के लिए उन्हें मरना पड़ेगा ।
इंसानों से तो बेहतर ही हैं ये परवाने , कम से कम बेवफ़ाई तो नहीं करते , और हिम्मत है इनकी क़ाबिले तारीफ़ , मरने से नहीं डरते ।
इन दीयों के हम आभारी हैं , ख़ुद जल कर कायनात में रोशनी फैलाते हैं ,किसी के काम कैसे आना चाहिए , इस बात का हमें ये अहसास दिलाते हैं ।
उम्मीद करता हूँ कि बहुत ख़ुशनुमा बीती होगी आपकी दिवाली , अब अगले साल तक दिवाली का करना पड़ेगा इंतज़ार ।
और आपको ये भी मानना पड़ेगा कि सब त्यौहारों में सब से उत्तम है दिवाली का त्यौहार !
लेखक——निरेन कुमार सचदेवा।
Hope everyone has a festive Diwali .