
छोड़ तो दूँ लिखना मैं अभी के अभी , लेकिन किसी की साँसें चलतीं हैं लफ़्ज़ों से मेरी ।
लिखना कैसे छोड़ दूँ , किसी की अहसासें जुड़ी हुई हैं शेरों से मेरी ।
इसीलिए लिखता रहता हूँ क्यूँकि किसी की ख़ुशियाँ जुड़ी हुई हैं क़िस्सों से मेरी ।
क़लम और स्याही का मैं निस दिन इस्तेमाल करता रहता हूँ , क्यूँकि किसी की आशाएँ जुड़ी हुई हैं हरफो से मेरी ।
हैरान होंगे आप ये सुन कर कि अगर वो नासाज़ होती है तो आँसू बहते हैं पलकों से मेरी ।
और मेरे अरमानों की सुगन्ध महकती है झुलफ़ो में उसकी ।
जानना चाहते हो मेरी ज़िंदगी के राज , वो छुपे हैं बातों में उसकी ।
खो गए हैं मेरे ख़्वाब कहीं रातों में उसकी ।
और मेरी सब मुस्कुराहटें छुपी हुई हैं दीं हुई सौग़ातों में उसकी ।
और इतने ख़याल कैसे आ जाते हैं इस मामूली से शायर को , क्यूँकि कहीं ना कहीं बसा हुआ हूँ मैं जज़्बातों में उसकी ।
या रब , इतना करम करना मुझ पर, कि मेरा नाम भी आए फरिसते ख़ैरातों में उसकी ।
निश्चित है कि वो बेपनाह मोहब्बत करती है मुझ से , इनतज़ार कर रहा हूँ कि कब हो पाएगी मुलाक़ात उस से ।
अभी तक तो सब शेर ओ शायरी तक ही सीमित रहा है , पता नहीं कब रूबरू होगी बात उस से ।
उस नादान को ये समझाना पड़ेगा कि अगर मेरे कलाम को ज़िंदा रखना है तो सिर्फ़ काफ़ी नहीं है मेरी लेखनी को पढ़ना ।
मेरी साँसें बरक़रार रहें , तो उसे जल्द ही पड़ेगा मुझ से मिलना ।
निस्सन्देह , जब दो प्यार भरे दिल मिलेंगे तो तय है फूलों का खिलना ।
उसकी साँसें चलती रहें , इसके लिए मेरा लिखना है ज़रूरी ।
इसीलिए ये शेर ओ शायरी लिखना बन गयी है मेरी कमज़ोरी , मेरी मजबूरी !
ना खाता हूँ , ना पीता हूँ , बस लगातार लिखता रहता हूँ , लेकिन ना जाने फिर भी हम में है ये दूरी ?
मालिक मेरे , अब तू ही कोई ऐसी राह दिखा कि हमारा मिलन हो पाए, फिर तमाम उम्र करूँगा तेरी पूजा , तेरी इबादत , तेरी जी हुज़ूरी !
कवि——-निरेन कुमार सचदेवा।
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