इश्क़ करो तो करो बेइन्तहा-“निरेन कुमार सचदेवा”

तुम आयो या ना आयो मेरी ज़िंदगी में, ये तुम्हारी मर्ज़ी , मेरा इश्क़ बेईंतेहा था,बेईंतेहा है और बेईंतेहा रहेगा ।
तुम सुनो या ना सुनो , ये तुम्हारी मर्ज़ी, मेरा दिल हमेशा तुम्हारा ही नाम पुकारेगा ।
तुम मानो या ना मानो, ये तुम्हारी मर्ज़ी, मैं तुम्हें दिल ओ जान से चाहता हूँ, मेरा दिल हमेशा यही कहेगा ।
तुम जानो या ना जानो, ये तुम्हारी मर्ज़ी, जिन गीतों में अमर प्रेम का ज़िक्र हो, मेरा मन अब बस वोही गीत सुनेगा ।
चलो ख़यालों में ही सही, तुमने है हाँ कर दी, चंद पल की असीम ख़ुशी पाने के लिए, मेरा दिल यही समझेगा ।
ख़ैर, मरना तो सब को ही है, मैं कौन सा अमर हूँ, लेकिन मरने के बाद भी दिल तुमसे मिलने के लिए , तड़पेगा , तरसेगा ।
चाहता हूँ कि मेरे मरने की ख़बर तुझ तक ना पहुँचे, लेकिन अगर पहुँच गयी तो तेरा मानसिक संतुलन भी फिर बिगड़ेगा ।
चलो , इस जन्म में ना सही , क्या अगले जन्म में हमारा मेल हो सकेगा ?
ख़ैर, अभी तो तू लापरवाह है, लेकिन एक ना एक दिन, तुझे मेरे इश्क़ को यूँ ठुकराना भारी पड़ेगा ।
बेईंतेहा का मतलब शायद तू पूरी तरह से नहीं जान पाई है, बस आख़िर में इतना ही कहूँगा कि मुझ जैसा मजनू दीवाना आशिक़ तुझे इस पूरी कायनात में और ना मिलेगा !
लेखक——-निरेन कुमार सचदेवा!
If you love someone, love ❤️ heart , body and soul !

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