कुछ गुनाह कर लो इश्क़ जैसा, कोई फ़िक्र नहीं, मुझ पर लगा देना फिर इल्ज़ाम।
जिस को आम लोग जनूनियत कहते हैं, “इश्क़” है उसका नाम।
कुछ नासमझ कहते हैं , ये एक गुनाह है, और कुछ नासमझ कहते हैं ये एक ख़ता।
मंज़ूर है मुझे, ये गुनाह , ये ख़ता करूँगा हज़ारों बार——-सिर्फ़ उस एक शख़्स से ——-!
इश्क़ है मुझे जिसकी रूह से , जिसकी आत्मा से, जिसके अक्स से——-!
इस जुनूनियत को मैं एक अजब सी वहशियत बना के दिखाऊँगा———उसके दिल के एक कोने में अपना घर बनाऊँगा——-!
फिर बचा हुआ जीवन मैं वहीं बिताऊँगा।
गुनाह किया है मैंने, मुझे गुनेहगार कहिए, इश्क़ का बीमार कहिए।
दे दीजिए मुझे ये ख़िताब, फिर ज़िन्दगी हो जाएगी लाजवाब।
क्या कहा आपने, मिलेगी सज़ा, हम को है बहुत भायी आपकी ये अदा।
बहुत नादान हैं आप, ये सज़ा भी देगी हमें कुछ अलग मज़ा।
क़ैद करवा दीजिए मुझे दीवारों में , मैं फिर भी निरंतर नाचता ही रहूँगा उसके इशारों पे।
जिस दिन होगी दीवारों के उस तरफ़ , उस से मुलाक़ात, उस दिन नाच उठेंगे अनकहे और अनसुने अहसास और जज़्बात।
शुक्रिया आपका, आपने कहा कि महीने में एक बार हो पाएगा उसका दीदार——-नतमस्तक होकर आपका शुक्राना करता हूँ बार बार।
वो हुस्न से भरपूर है, वो मेरी दिलरुबा है, इसीलिए मुझे अपने आप पे ग़ुरूर है।
नज़ाकत और मासूमियत हैं उसके गहने, जवाँ होते ही ये थे उसने पहने।
गुनाह किया क़ुबूल हमने, कुछ को कर दीजिए रियायत——वक़्त मुलाक़ात का थोड़ा बढ़ा दीजिए , ये है हमारी चाहत।
मरने के बाद, हमारे मक़बरे को एक मुख़्तलिफ़ नाम देना।
जो हाल होता है हर मजनू का , हमें भी वो इनाम देना।
नाम कब्र का रखना, “प्यार का महल”,फिर सभी आशिक़ों के दिल में मच जाएगी हलचल।
या ख़ुदा, बस चाहता हूँ इतनी तब्दीली, कि अब कभी भी इश्क़ को कोई गुनाह ना माने।
इश्क़ पाक है, पवित्र है, सदियाँ बीत गई हैं यही सुनते सुनते, यही कह गये हैं लोग स्याने———!!
कवि——निरेन कुमार सचदेवा।
To fall in love 😻 is the most beautiful 🤩 mistake one can make in his or her lifetime.
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