बना प्यार जिसका सुगंधित सुमन है।
अपने -अपने इष्ट देव को नमन है।
जहां दृष्टि डाली बनी धूल चंदन।
जिसे छू दिया वह बना रत्न कंचन ।
पंचतत्वों का जीवन संतुलित रहे ।
प्राण की चेतना को इष्ट बढ़ाते रहें।
उपासना के विभिन्न प्रकार, रूप हैं।
सत्कर्म के माध्यम ही सच्चा स्वरूप है।
अपने अंतर्मन में इष्ट को प्रत्यक्ष कर ।
अपनी दसों इंद्रियों को वश में कर।
माया, मोह ,छल, प्रपंच, से बचकर।
अपनेहृदय को शुद्ध, निर्मल,सबल कर।
मन, कर्म, वचन से हो इष्ट को समर्पण।
अनासक्त भाव से इष्ट देव को अर्पण।
मंत्र जाप , मानसिक पूजन ,नामोच्चारण।
अपने अपने इष्ट का ध्यान, हो कल्याण।
स्वरचित
डाॅ सुमन मेहरोत्रा
मुजफ्फरपुर, बिहार