इस दिवाली-“रजनी प्रभा”

एक ’संकल्प’ लिया है मैंने
इस दिवाली,
अपने अंतरात्मा में उपजे तम रूपी
तमाम अमानवीय अहंकार का
परित्याग करूंगी।

क्योंकि देखा है मैंने,
दो वक्त की रोटी की खातिर,
एक कोमल कल्पित,
भविष्य निर्माता हाथों में,
मजबूत हथौड़ा,
जो उस आग में तपते लोहे पर नहीं,
अपितु हमारी उस निक्कमी,
अर्थव्यवस्था पर प्रहार करती है,
जिसमें केवल कागज़ी खानापूर्ति है
’बाल श्रम एक कानूनन अपराध’।

धधकते दवाग्नि को शांत करना,
इस सृष्टि का सबसे प्रथम
और श्रमसाध्य कार्य है,
जिस खातिर लोग,
साम, दाम, दण्ड,भेद की नीति,
को नियति की परिणीति घोषित
करते नहीं चूकते।

अत:आज से मेरी थाली में,
प्रमात्मा का दिया जो भी मिलेगा,
उसे सहर्स स्वीकार करूंगी,
इक्षाएँ,अपेक्षाएं और आवश्यकता,
रूपी अहंकार को इस अमावस,
उसी धधकते आग में जला आई हूं मैं।

रजनी प्रभा

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