उसकी अपनी परिभाषा-“राजेन्द्र ओझा”

मैं जब,
ये क्या गोद रहा है दीवार पर,
कहता हूं,
वो कहता है,
नाना, गोद नही रहा हूं,
चित्र बना रहा हूं,
वो मेरा भैरव रूप है,
दिख नहीं रहा ?

भैरव रूप,
दीवार पर तो नहीं,
उसके चेहरे पर,
जरूर दिख रहा था।

मैं जिसे,
पानी बर्बाद करना,
और,
स्कूटर गंदी करना कहता हूं,
वो उसे,
मग्गे भर थोड़े से पानी से,
स्कूटर चमकाना कहता है।

ये डिजाइन है नाना,
जब मैं उसे,
उलटी पहनी हुई,
शर्ट को दिखाता हूं।

उनके पास,
उनकी अपनी परिभाषाएँ हैं
और हम,
हर बार,
उनकी परिभाषाओं के सामने,
बौने हो जाते हैं।
000000000

राजेन्द्र ओझा
पहाड़ी तालाब के सामने,
बंजारी मंदिर के पास,
वामनराव लाखे वार्ड (66)
कुशालपुर
रायपुर ( छत्तीसगढ़)



1 Comment

  1. Ritu jha

    👌👌wah khoob 👌👌✍️✍️

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *