औरंगाबाद की पहचान है परता कल्प वृक्ष-“सत्येन्द्र कुमार पाठक”

बिहार के औरंगाबाद जिले का कुटुम्बा प्रखंड के परता में कल्पतरु मंदिर परिसर में कल्पतरु मंदिर एवं राधाकृष्ण मंदिर 18 वीं शताब्दी को बनवायी गई थी । झारखंड से प्रवाहित होनेवाली बटाने नदी किनारे कल्पतरु मंदिर अवस्थित है ।और झारखंड की सीमा है । ब्रिटिश साम्राज्य के दौरान विष्णुपुर का क्षेत्र का जमींदार बंगाली द्वारा कल्पतरु क्षेत्र का विकास किया गया था । श्याम बाजार कोलकाता के जमींदार बंगाली को पुत्र-प्राप्ति की मन्नतें मांगी पर कल्पवृक्ष ने पूरा किया और निर्माता के दर्द को हरकर मंदिर उठ खङा हुआ था । कल्पवृक्ष परिसर आस्था का केंद्र , पुत्र प्राप्ति , बीमारी ठीक करने , बेटी के विवाह इत्यादि को पूरी करने में आ रहे व्यवधान को दूर करता है । जमींदार बंगाली ने मंदिर बनवायी और पुजारी के खर्च के लिए पूरा इंतजाम के लिए पिचासी बीघा कल्पवृक्ष मंदिर को दान दिया था । कल्प वृक्ष मंदिर ईंट, चूना–गारा से निर्मित और लकङी के मोटे–मोटे तख्तों को दरवाजे के ऊपर रखा गया है । मंदिर बेहद सामान्य ऊंचाई के हैं । मंदिर की दीवार पर दो जगह छोटे- छोटे शिलापट्ट लगे भाषा संस्कृत है । चहारदीवारी से लगा हुआ गौशाला के गायों के दूध से कल्पवृक्ष का पटवन होता है । कार्तिक पूर्णिमा को सुथनिया मेला 9 एकड़ भूमि में हैं । भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने किशुनपुर मेला का उल्लेख किया है । कल्पवृक्ष मंदिर के परिसर में ठाकुरवाड़ी , कल्पवृक्ष की पूजा होती है। कल्पवृक्ष का वनस्पतिक नाम एडेनसोनिया डिजटेटा की ऊंचाई लगभग साठ से सत्तर फीट होती है । तने का घेरा डेढ सौ फीट और हजार दो हजार साल से अधिक है । आयुर्वेद शास्त्र के अनुसार कल्पवृक्ष के द्वारा सकारात्मक ऊर्जा विकसित किया जाता है । वृक्ष किडनी, दमा, एलर्जी, हृदय और उदर रोगों के उपचार में बेहद उपयोगी तथा विटामिन सी और कैल्सियम का उम्दा स्रोत होता है । शास्त्रों के अनुसार समुद्र मंथन की चौदह रत्न में निकलीं कल्पवृक्ष है । कल्पवृक्ष को मनोकामना सिद्धि का उत्तम साधन माना जाता है । स्वर्ग से धरती पर कल्पवृक्ष आया है । कल्पवृक्ष का फूल पिले रंग और फल की लंबाई 6 इंच एवं प्रजातियों में फल गोल होता है । अम्बा वाले वृक्ष के फल का आवरण बेहद कठोर होता जिसे बिना भारी पत्थर के प्रहार के तोङना मुश्किल होता था । आवरण पर मखमली रोयां हरा और पकने पर हरापन लिये पीले रंग का होता था । तोङने पर भीतर सफेद रंग की सूखी परत जमी होती जिसके नीचे थोङी –थोङी दूरी पर काले-जामुनी रंग के बीज होते है। सफेद पदार्थ से युक्त बीज को मुंह में डालकर जब चूसने पर स्वाद खट्ठा–मीट्ठा लगता है । कल्प वृक्ष के फल कोविलायती इमली कहा जाता है । कल्पवृक्ष की पहले दो शाखाएं गिरने के पश्चात 2010 में जाकर अंतिम रूप से गिर गया था । रासायनिक उपचार से गिरा दिया गया ! व्यवसाय खूब फले–फूले इसके लिए उस वृक्ष को जाना पङा । असली कारण यह था कि किसी को पता ही नहीं चला कि यह कल्पवृक्ष है । कल्पवृक्ष ओरंगाबाद जिले की पहचान है। झारखंड राज्य का हरिहरगंज , बिहार का औरंगाबाद और नवीनगर के होते हुए अम्बा परता गांव में स्थित कल्पवृक्ष का दर्शन होता है ।

1 Comment

  1. Ritu jha

    Waah waah behtarin 👌👌✍️✍️

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