कहने को हैं दूरियां तेरे मेरे दरमियान,
पर हकीकत को तू जानती है या मैं।
चेहरे पर मुस्कुराहट नजर आती है,
पर हकीकत को तू पहचानती है या मैं।
दिल की आवाज को दिल सुनता है,
फिर भी ख्वाब कोई नहीं बुनता है,
भले दुनिया ना माने इसे मोहब्बत,
पर हकीकत को तू मानती है या मैं।
दर्द के गहरे सागर में गोते लगा रहे हैं,
फिर भी हँसते हँसते जीते जा रहे हैं,
दर्द को छिपाकर खुशियां बांट रहे हैं,
गम को अपने ना तू बांटती है ना मैं।
सामाजिक बंधनों में जकड़े हुए हैं,
निभाने की जिद्द हम पकड़े हुए हैं,
जिन्हें छूना था मन, वो छू ना सके,
इस मन के अंदर तू झांकती है या मैं।
“विकास” संभाले हुए हैं खुद को अब,
खुशियों से भरे दामन तुम्हारा वो रब,
साथ रहेंगे सदा एक दूजे को हम यूँ ही,
दुःख के काले बादल तू छांटती है या मैं।
©® डॉ विकास शर्मा