क्या सीखा हमने पतंग उड़ा कर-“निरेन कुमार सचदेवा”

किसी ने लिखा , छत से पेंच लड़ाने का आविष्कार इंडिया में ही हुआ है , अब बात चाहे पतंग की हो या दिल की , अब हमारा जवाब भी सुन लो ——————
बिलकुल ठीक कहा आपने , अब बात चाहे पतंग की हो या दिल की , पहली नज़र में ही वो शान बन गयीं थी हमारे दिल की महफ़िल की ।
यक़ीनन , छत से पेंच लड़ाने का भारत में ही हुआ है आविष्कार , इसीलिए तो इस देश में फैला हुआ है प्यार ही प्यार ।
वैसे तो हम गुल्ली डंडा , पिट्ठु , छुप्पन छुपाई भी खेलते थे , लेकिन जो खेल काम आया , वो था पतंग उड़ाने का , इस खेल ने नाम ही बदल दिया हमारे अफ़साने का ।
एक नया अहसास का आगमन हुआ था ज़िंदगी में , और वो था अहसासे इश्के मोहब्बत , दिल में घर बना चुकी थी उनकी चाहत ।
हम छत पर आते थे पतंग उड़ाने , वो आते थे बाल सुखाने , फिर नज़रों के पेंच कुछ ऐसे लड़े कि पूरी तरह से बदल गए थे हमारे ज़माने ।
उनकी पहली नज़र , कर गयी थी असर , भूल गए हम माँझा और पतंग , उनके प्यार में हो गए थे अपंग ।
ऐसा चेहरा , ऐसी हसीन , हम उसी वक़्त हो गए थे उसकी ओर आकर्षित , उसकी ख़ूबसूरती ने कर दिया था हमें अचंभित ।
पतंग का खेल अब बन गया था उमंग और तरंग का खेल , जब से गया था उनसे मेल,
बढ़ती रहीं उनसे मुलाक़ातें , दिल जवाँ थे , ज़िंदगी का रूख बदल गया था , बदल गए थे दिन , बदल गयीं थी रातें ।
सिलसिला इश्क़ का अब बन गया था एक जुनून , सिर्फ़ उनसे मिलने पर ही दिल को मिलता था सुकून ।
तो सोचिए जनाब , इस माँझे और पतंगों ने , रंग दी थी हमारी ज़िंदगी इंद्रधनुशी रंगों से ।
हमारे हाथ की लकीरों ने और क़िस्मत ने भी हमारा साथ दिया और उन्हें सदियों के लिए हमने हमसफ़र बना लिया ।
हमारी ज़िंदगी की पतंग की डोर अब हमने उन्हें सौंप दी है , जिस ओर चाहें हमें उड़ा लें , अब हमने नैनो के पेंच उनसे उम्र भर के लिए भिड़ा लियें हैं ।
लेखक——-निरेन कुमार सचदेवा
Well kite flying changed the direction of my life !!

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