खरमास और तुलसी की उपासना-“सत्येन्द्र कुमार पाठक”

सनातन धर्म की संस्कृति का वैदिक , ज्योतिष शास्त्र औरविभिन्न पंचांग के अनुसार भगवान सूर्य 12 राशियों का भ्रमण करते हुए बृहस्पति की राशियों, धनु और मीन में प्रवेश करने पर 30 दिनों यानि एक महीने की अवधि को खरमास कहा गया हैं। खर मास में सभी प्रकार के हवन, विवाह चर्चा, गृह प्रवेश, भूमि पूजन, द्विरागमन, यज्ञोपवीत, विवाह, हवन या धार्मिक कर्मकांड आदि कार्य निषेध हैं । खरमास में सिर्फ भागवत कथा या रामायण कथा का सामूहिक श्रवण ही किया जाता है। ब्रह्म पुराण के अनुसार, खरमास में मृत्यु को प्राप्त व्यक्ति नरक का भागी होता है। खरमास भारतीय पंचांग पद्धति में प्रति वर्ष सौर पौष हैं। उत्तराखण्ड में ‘मलमास’ या ‘काला महीना’ और खरमास विभन्न क्षेत्रों में कहा जाता है। खरमास के दौरान सनातन में धार्मिक कृत्य और शुभ मांगलिक कार्य , अनेक प्रकार के घरेलू और पारम्परिक शुभ कार्यों की चर्चाओं के लिए वर्जित है। देशाचार के अनुसार नवविवाहिता कन्या खरमास के अन्दर पति के साथ संसर्ग नहीं करती महीने के दौरान अपने मायके में आकर रहना पड़ता है। खर मास में भागवत कथा या रामायण कथा का सामूहिक श्रवण खरमास में किया जाता है। ब्रह्म पुराण के अनुसार, खर मास में मृत्यु को प्राप्त व्यक्तिनरकका भागी होता है। गरुड़ पुराण में पौष मास की मृत्यु का अधोगामी परलोक है। महाभारत में खरमास के अन्दर अर्जुन ने भीष्म पितामह को धर्म युद्ध में बाणों की शैया से वेध दिया था। सैकड़ों बाणों से विद्ध हो जाने के बावजूद भीष्म पितामह का प्राण नहीं त्यागने का मूल कारण खरमास था । खरमास में प्राण त्याग करने पर उनका अगला जन्म नरक की ओर जाएगा। अर्जुन से पुनः तीर चलाने के लिए कहा जो उनके सिर पर विद्ध होकर तकिए का काम करे। इस प्रकार से भीष्म पितामह पूरे खर मास के अन्दर अर्द्ध मृत अवस्था में बाणों की शैया पर लेटे रहे और सौर माघ मास की मकर संक्रांति आई थी । उसके बाद शुक्ल पक्ष की एकादशी को उन्होंने अपने प्राणों का त्याग किया। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार सूर्य अपने सात घोड़ों के रथ पर बैठकर ब्रह्मांड की परिक्रमा के दौरान कहीं सूर्य को एक क्षण रुकने की इजाजत नहीं है। सूर्य के सातों घोड़े सारे साल भर दौड़ लगाते-लगाते प्यास से तड़पने की दयनीय स्थिति से निबटने के लिए सूर्य तालाब के निकट अपने सातों घोड़ों को पानी पिलाने हेतु रुकने जाते हैं। तभी उन्हें यह प्रतिज्ञा याद आई कि घोड़े बेशक प्यासे रह जाएं लेकिन उनकी यात्रा में विराम नहीं लेना है। नहीं तो सौर मंडल में अनर्थ हो जाएगा। सूर्य भगवान ने चारों ओर देखा, तत्काल भगवान सूर्य जल कुंड के आगे खड़े दो गधों को रथ पर जोत कर आगे बढ़ गए और अपने सातों घोड़े तब अपनी प्यास बुझाने के लिए खोल दिए गए है । गधे यानी खर, अपनी मन्द गति से पूरे पौष मास में ब्रह्मांड की यात्रा करते रहे और सूर्य का तेज बहुत ही कमज़ोर होकर धरती पर प्रकट हुआ था । पौष मास के अन्तर्गत पृथ्वी के उत्तरी गोलार्द्ध में सूर्य देवता का प्रभाव क्षीण हो जाता है और कभी-कभी सूर्य की तप्त किरणें धरती पर पड़ती हैं। सूर्य की धनु संक्रांति के कारण मलमास होता है। सूर्य जब बृहस्पति की राशि धनु अथवा मीन में होता है दोनों राशियां सूर्य की मलीन राशि मानी जाती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य का बृहस्पति में परिभ्रमण श्रेष्ठ नहीं माना जाता है। वर्ष में दो बार सूर्य बृहस्पति की राशियों में संपर्क में आता है। प्रथम द्रष्टा आंग्ल पंचांग के अनुसार 16 दिसंबर से 15 जनवरी तथा द्वितीय द्रष्टा14 मार्च से 13 अप्रैल है । द्वितीय दृष्टि में सूर्य मीन राशि में रहते हैं। सूर्य की गणना के आधार पर पौष माह को धनुर्मास एवं मीन मास कहा जाता है। खरमास में तुलसी उपासना एवं भगवान सूर्य , विष्णु , शिव की उपासना मत्वपूर्ण है ।
करपी , अरवल , बिहार

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